द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : अमेरिका में एच-1बी वीजा को लेकर भारतीय आईटी कंपनियों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हाल ही में अमेरिकी सांसदों ने TCS-Infosys, कॉग्निजेंट और अन्य बड़ी टेक कंपनियों से हजारों एच-1बी वीजा आवेदन दायर करने पर जवाब मांगा है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब इन कंपनियों ने हाल ही में अमेरिकी कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी की है।
अमेरिकी सीनेट न्यायपालिका समिति के चेयरमैन चार्ल्स ग्रासली और रैंकिंग सदस्य रिचर्ड डर्बिन ने अमेजन, एप्पल, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, वॉलमार्ट, डेलॉयट और जेपी मॉर्गन चेज जैसी कंपनियों को भी नोटिस भेजा है। सांसदों ने कंपनियों से उनके भर्ती तरीकों, वेतन संरचना और अमेरिकी कर्मचारियों एवं एच-1बी वीजा धारकों के बीच लाभों में असमानता पर जानकारी मांगी है।
अमेरिकी सांसदों की चिंता
सांसदों का कहना है कि अमेरिकी टेक्नोलॉजी सेक्टर में बेरोजगारी दर बढ़ रही है। फेडरल रिजर्व के आंकड़ों के मुताबिक, STEM डिग्री वाले हालिया स्नातकों को भी रोजगार की भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सांसद ग्रासली और डर्बिन लंबे समय से एच-1बी वीजा कार्यक्रम की आलोचना करते रहे हैं। उनका आरोप है कि कई कंपनियां इन वीज़ाओं का उपयोग अमेरिकी कर्मचारियों की जगह विदेश से सस्ते श्रमिकों को भर्ती करने के लिए करती हैं।
इसी को ध्यान में रखते हुए सांसद अब एच-1बी और एल-1 वीजा सुधार अधिनियम को फिर से पेश करने जा रहे हैं। उनका दावा है कि यह कानून अमेरिकी आव्रजन प्रणाली में धोखाधड़ी और दुरुपयोग को रोकने के साथ-साथ अमेरिकी कामगारों और विदेशी वीजाधारकों दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।
भारतीय आईटी कंपनियों पर असर
भारतीय आईटी कंपनियां जैसे TCS, Infosys, Wipro, HCL और Cognizant अमेरिका में बड़ी संख्या में प्रोजेक्ट्स पर काम करती हैं। इन कंपनियों के लिए एच-1बी वीजा बेहद अहम है, क्योंकि इनके माध्यम से भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स अमेरिकी क्लाइंट लोकेशन पर काम कर पाते हैं।
अगर अमेरिकी सांसदों की मांग के मुताबिक एच-1बी धारकों को अमेरिकी कामगारों के बराबर या उससे ज्यादा वेतन देना अनिवार्य कर दिया जाता है, तो भारतीय कंपनियों की लागत (Cost) बढ़ जाएगी। इससे उनकी प्रॉफिटेबिलिटी प्रभावित हो सकती है और कई प्रोजेक्ट्स के मार्जिन घट सकते हैं।
भारत के लिए संभावनाएं
सख्त नियम लागू होने पर भारतीय आईटी कंपनियां ऑफशोर डिलीवरी मॉडल (यानी भारत से ही प्रोजेक्ट्स डिलीवर करना) को और तेजी से अपनाने की कोशिश करेंगी। इससे भारत में रोजगार के नए अवसर जरूर बढ़ सकते हैं, लेकिन अमेरिकी क्लाइंट्स को ऑनसाइट सपोर्ट कम मिल पाएगा।
कुल मिलाकर, अमेरिकी सांसदों की यह सख्ती भारतीय आईटी सेक्टर के लिए एक बड़ी चुनौती है। अगर वीजा नियम और सख्त होते हैं, तो भारतीय कंपनियों की लागत और मार्जिन पर सीधा असर पड़ेगा, हालांकि इससे भारत में रोजगार की नई संभावनाएं भी खुल सकती हैं।