द लोकतंत्र: हिंदू पंचांग के अनुसार 18 सितंबर 2025 को एक दुर्लभ और पावन योग बन रहा है। इस दिन मासिक शिवरात्रि और पितृपक्ष प्रदोष व्रत का संगम हो रहा है। शास्त्रों में इस संयोग को अत्यंत पुण्यदायी और दुर्लभ अवसर बताया गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान शिव की आराधना और पितरों के तर्पण से साधक को दोगुना फल प्राप्त होता है।
मासिक शिवरात्रि और प्रदोष व्रत का महत्व
मासिक शिवरात्रि हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि की संध्या में रखा जाता है। जब यह दोनों पितृपक्ष में एक साथ आते हैं, तो पुण्यफल कई गुना बढ़ जाता है। यह अवसर न केवल शिवभक्तों के लिए, बल्कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी श्रेष्ठ माना गया है।
शास्त्रों का संकेत
पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख है कि प्रदोषकाल में भगवान शिव की पूजा करने से साधक को असीम सुख, सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है। वहीं पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण से पितर संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं। जब दोनों कर्म एक साथ किए जाएं, तो यह पुण्यफल जीवन के कष्टों को समाप्त करने वाला माना जाता है।
इस दिन का विशेष पाठ
धार्मिक परंपरा के अनुसार इस योग पर शिव तांडव स्तोत्र का पाठ विशेष फल प्रदान करता है। इसके साथ “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप साधक के लिए मोक्ष के द्वार खोलने वाला माना गया है।
पूजन विधि
प्रदोषकाल (संध्या समय) में भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
बेलपत्र, धतूरा, सफेद पुष्प और चंदन अर्पित करें।
दीपक जलाकर शिवपुराण अथवा प्रदोष स्तोत्र का पाठ करें।
पितरों के लिए तर्पण करें और दक्षिण दिशा की ओर दीपदान करना न भूलें।
धार्मिक विद्वानों का मानना है कि ऐसे अवसर बहुत कम मिलते हैं। जो साधक विधिवत पूजन, तर्पण और मंत्रजाप करते हैं, उन्हें जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
इस बार मासिक शिवरात्रि और पितृपक्ष प्रदोष व्रत का अद्भुत संगम शिवभक्तों और पितृ तर्पण करने वालों के लिए आस्था का महापर्व बनकर आया है। भक्त यदि प्रदोषकाल में शिव का जलाभिषेक, बेलपत्र अर्पण और शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो पितरों की आत्मा तृप्त होकर साधक को आशीर्वाद देती है।