द लोकतंत्र : मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जहरीले कफ सिरप ने 14 मासूम बच्चों की जान ले ली। दो अन्य बच्चों की मौत बैतूल में हुई। लेकिन इन मौतों के बाद भी प्रदेश सरकार को पीड़ित परिवारों तक पहुंचने में 33 दिन लग गए। यह देरी अब सवालों के घेरे में है, क्या सरकार और सिस्टम की लापरवाही ने इन बच्चों की जान ली?
मां अफसाना का दर्द
अफसाना अपने बेटे उसैद के चौथे जन्मदिन की तैयारी कर रही थीं, लेकिन वह दिन कभी आया ही नहीं। सरकारी अस्पताल से मिली दवा, जहरीला कफ सिरप, उसके जीवन की आखिरी खुराक बन गई। उसैद की तरह अदनान समेत कई बच्चों की मौत इसी सिरप से हुई।
उसैद के पिता यासीन ने इलाज के लिए अपना ऑटो तक बेच दिया, लेकिन बेटे को नहीं बचा पाए। अब वह पूछते हैं, “अगर ये सिरप जहरीला था तो बाजार में कैसे आया?”
जिम्मेदारी किसकी?
स्थानीय डॉक्टरों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन सवाल यही है कि जब दवा सरकारी मंजूरी के बाद बाजार में आती है, तो जिम्मेदारी सिर्फ डॉक्टरों की कैसे हो सकती है?
ड्रग कंट्रोलर और फार्मा विभाग पर कार्रवाई सिर्फ पद से हटाने तक सीमित रह गई है, जबकि लापरवाही का नतीजा 14 परिवारों ने अपने बच्चों की जान देकर भुगता है।
मुख्यमंत्री का देर से जागना
भोपाल से छिंदवाड़ा की दूरी 313 किमी है, जिसे तय करने में छह घंटे लगते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री मोहन यादव को वहां पहुंचने में पूरे 33 दिन लग गए।
जब बच्चे जहरीला सिरप पी रहे थे, तब मुख्यमंत्री काजीरंगा नेशनल पार्क में हाथियों की उम्र का अध्ययन कर रहे थे। आलोचकों का कहना है कि सरकार ने घटना को गंभीरता से नहीं लिया।
पहले भी ले चुका है बच्चों की जान
कफ सिरप से मौत का यह पहला मामला नहीं है।
2022 में गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत
इंडोनेशिया में 200 बच्चों की मौत
उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत
इन सभी घटनाओं में WHO ने पाया कि सिरप में DEG (Diethylene Glycol) और EG (Ethylene Glycol) जैसे जहरीले केमिकल मिले थे, वही रसायन जो छिंदवाड़ा के सिरप में संदिग्ध हैं।
कैसे बनता है जहर?
कफ सिरप में क्लोरफेनिरामाइन और फेनिलफ्राइन जैसे तत्व मिलाए जाते हैं। सिरप को घोलने के लिए सोर्बिटॉल या ग्लिसरीन जैसे सुरक्षित सॉल्वेंट इस्तेमाल किए जाते हैं। लेकिन जब निर्माता कंपनियां लागत घटाने के लिए DEG या EG का प्रयोग करती हैं, तो वही सिरप बच्चों के लिए जहर बन जाता है। ये रसायन किडनी फेलियर, नर्व डैमेज और खून में ऑक्सीजन की कमी जैसे गंभीर असर डालते हैं।
सवाल अब भी बाकी है
क्या सिर्फ डॉक्टरों या स्थानीय फार्मासिस्ट को सजा देना काफी है? या फिर उन अधिकारियों और कंपनियों पर भी कार्रवाई होगी, जिन्होंने जहरीली दवाओं को बाजार तक पहुंचाया?