द लोकतंत्र : हिंदू पंचांग के अनुसार, अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपनी संतान की दीर्घायु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। इस वर्ष अहोई अष्टमी 2025 में 25 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व (Ahoi Ashtami Significance)
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ की तरह कठिन और फलदायी माना जाता है। महिलाएं इस दिन निर्जल व्रत रखती हैं और शाम के समय प्रदोष काल में माता अहोई की पूजा करती हैं। पूजा के बाद चंद्र दर्शन और अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण किया जाता है।
यह व्रत अहोई माता को समर्पित है, जिन्हें देवी लक्ष्मी का रूप माना गया है। अहोई माता को संतान की रक्षक और परिवार की समृद्धि की देवी के रूप में पूजा जाता है।
राधा कुंड में स्नान का महत्व (Radha Kund Snan Importance)
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर नामक राक्षस का वध किया था, तो उन पर गौहत्या का दोष लग गया। इस पाप से मुक्ति के लिए उन्होंने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया।
इसके बाद राधा रानी ने अपने कंगन से एक और कुंड बनाया, जिसमें उन्होंने स्नान किया। यही कुंड आज राधा कुंड और कंगन कुंड के नाम से प्रसिद्ध है।
माना जाता है कि अहोई अष्टमी के दिन राधा कुंड में स्नान करने से निःसंतान दंपतियों को संतान प्राप्ति होती है। विशेषकर आधी रात के समय डुबकी लगाने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है।
अहोई अष्टमी की पूजा विधि (Ahoi Ashtami Puja Vidhi)
सुबह जल्दी स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
शाम को प्रदोष काल में अहोई माता की तस्वीर या दीवार पर बने चित्र की पूजा करें।
पूजा में दूध, फल, हलवा और पूड़ी का भोग लगाएँ।
रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद अर्घ्य दें और व्रत तोड़ें।
संतान प्राप्ति की कामना के लिए विशेष उपाय
अहोई अष्टमी की रात राधा कुंड में स्नान करें।
स्नान के बाद “जय राधे कृष्ण” का नाम जप करें।
संतान प्राप्ति के बाद पुनः राधा कुंड में स्नान कर धन्यवाद स्वरूप दीपदान करें।
अहोई अष्टमी केवल एक धार्मिक व्रत नहीं बल्कि मातृत्व का उत्सव है। इस दिन राधा कुंड में स्नान करने से संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।