द लोकतंत्र : चुनावी बॉन्ड स्कीम को लेकर आया सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला राजनीतिक दलों को बेचैन करने वाली है। अब कंबल ओढ़कर घी नहीं पीया जा सकेगा। बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। अदालत ने राजनीतिक पार्टियों से उन चुनावी बॉन्ड को लौटाने के लिए कहा है, जो अभी कैश नहीं हुए।
चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता पर सवाल
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कुल चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन याचिकाओं पर कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में सुनवाई की थी और नवंबर में फैसला सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को चुनावी बॉन्ड स्कीम को लेकर दाखिल याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, बेंच का फैसला एकमत है। हालांकि, इस मामले में दो फैसले हैं, लेकिन निष्कर्ष एक ही है।
चुनावी बॉण्ड RTI एक्ट का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में गोपनीय का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार कानून का उल्लंघन करता है। पीठ में शामिल जज जस्टिस गवई ने कहा कि पिछले दरवाजे से रिश्वत को कानूनी जामा पहनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सर्वोच्च अदालत के इस फैसले के बाद आम जनता को भी पता होगा कि किसने, किस पार्टी को कितनी फंडिंग की है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।
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बता दें, इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किया। इसमें सीजेआई के साथ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। संविधान पीठ ने 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक पक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर से दी गई दलीलों को सुना था। तीन दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
आख़िर क्या था चुनावी बॉण्ड ?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में पहली बार चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत की थी। दरअसल इसे राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत पेश किया गया था। इस बॉण्ड को राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में देखा गया था।
चुनावी बॉन्ड स्टेट बैंक की 29 शाखाओं में मिलता था। इसके जरिए कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था किसी पार्टी को चंदा दे सकती थी। ये बॉन्ड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते थे। खास बात ये है कि बॉन्ड में चंदा देने वाले को अपना नाम नहीं लिखना पड़ता। हालांकि, इन बॉन्ड को सिर्फ वे ही राजनीतिक दल प्राप्त कर सकते थे, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों।