द लोकतंत्र : भारतीय सिनेमा के बॉक्स ऑफिस पर साल 2025 में एक नया और रोमांचक ट्रेंड उभरकर सामने आया है। जहाँ दर्शकों की निगाहें हमेशा बॉलीवुड (Bollywood) और साउथ (South) की बड़े बजट की फिल्मों पर टिकी रहती हैं, वहीं इस वर्ष कम बजट की क्षेत्रीय फिल्मों (Regional Films) ने न केवल सफलता पाई है, बल्कि कमाई के मामले में ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी बनाए हैं। गुजराती फिल्म ‘लालो कृष्ण सदा सहायते’ और असमी फिल्म ‘रोई रोई बिनाले’ ने सिनेमाघरों में शानदार प्रदर्शन करते हुए यह साबित कर दिया है कि कहानी और कंटेंट ही किंग होता है। इन फिल्मों ने कमाई के मामले में ‘कांतारा चैप्टर 1’ और ‘छावा’ जैसी बड़ी फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया है।
लालो कृष्ण: लाभ का अभूतपूर्व उदाहरण
गुजराती फिल्म ‘लालो कृष्ण सदा सहायते’ ने बॉक्स ऑफिस पर जो कमाल किया है, वह किसी केस स्टडी से कम नहीं है।
- रिकॉर्ड तोड़ कमाई: रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस फिल्म का अत्यंत सीमित बजट मात्र ₹50 लाख था। लेकिन इसके मुकाबले फिल्म ने अब तक ₹60 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर ली है।
- रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) का शिखर: इस अभूतपूर्व कमाई के साथ, फिल्म का रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट (ROI) 12080% तक पहुँच चुका है। यह आंकड़ा इसे इस साल की सबसे ज्यादा प्रॉफिटेबल फिल्म बना चुका है। फिल्म की सफलता न केवल गुजराती सिनेमा के लिए गौरव का विषय है, बल्कि यह देश भर के फिल्म निर्माताओं को कम लागत और उच्च गुणवत्ता वाले कंटेंट पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करती है।
रोई रोई बिनाले: टॉप 10 प्रॉफिटेबल फिल्मों में शामिल
सिंगर जुबीन गर्ग की असमी फिल्म ‘रोई रोई बिनाले’ ने भी शानदार प्रदर्शन किया है।
- बजट और कलेक्शन: फिल्म का बजट करीब ₹5 करोड़ रुपए बताया गया है। बजट की अपेक्षा फिल्म ने अब तक ₹24.49 करोड़ रुपए कमा लिए हैं।
- ROI और रैंकिंग: इस कलेक्शन के साथ फिल्म का रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट 389.8% रहा है। यह फिल्म अब भारत की टॉप 10 प्रॉफिटेबल फिल्मों की सूची में 9वें नंबर पर आ गई है।
- प्रतिस्पर्धा: ‘रोई रोई बिनाले’ ने भी कमाई के मामले में ‘छावा’ को पछाड़ दिया है और यह जल्द ही ‘कांतारा चैप्टर 1’ के कलेक्शन को भी पीछे छोड़ने की राह पर है।
इन दोनों फिल्मों की सफलता ने स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय दर्शक अब भाषा या बड़े सितारों के नाम से ज़्यादा दमदार कहानी और विश्वसनीय कंटेंट को महत्व दे रहे हैं। ‘लालो कृष्ण सदा सहायते’ और ‘रोई रोई बिनाले’ का यह प्रदर्शन क्षेत्रीय फिल्म उद्योगों के लिए एक नए स्वर्ण युग का संकेत है, जहाँ छोटे बजट और मजबूत स्क्रिप्ट के दम पर बड़ी फिल्मों को चुनौती दी जा सकती है। यह भारतीय सिनेमा के लिए एक स्वस्थ और विषय-केंद्रित भविष्य की नींव रखता है।

