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जया बच्चन-पैपाराज़ी विवाद पर तीखी ‘Public Debate’, डिग्निटी और डिजिटल प्रचार की अनिवार्यता

The loktnatra

द लोकतंत्र : वरिष्ठ अभिनेत्री और राज्यसभा सांसद जया बच्चन ने पैपाराज़ी संस्कृति और सोशल मीडिया पर एक ताज़ा इंटरव्यू में तीखे बयान देकर नई बहस को जन्म दे दिया है। जया बच्चन ने पैपाराज़ी को ‘अजीब’ लोग बताते हुए उनकी शिक्षा, पृष्ठभूमि और किसी की डिग्निटी का ख्याल न रखने की शैली पर सवाल उठाया है। वरिष्ठ पत्रकार के साथ बातचीत में उन्होंने मीडिया की प्रशंसा करते हुए खुद को ‘पत्रकार की बेटी’ बताया, लेकिन पैपाराज़ी के कामकाज से पूरी तरह से असहमति जताई।

अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम सीमाओं का उल्लंघन

जया बच्चन के इस बयान के बाद सोशल मीडिया और फिल्म जगत के एक धड़े ने पैपाराज़ी का पक्ष लिया है।

  • पत्रकारों का पक्ष: फिल्म निर्देशक अशोक पंडित सहित कई यूज़र्स ने पैपाराज़ी को मीडिया इकोसिस्टम का ज़रूरी हिस्सा बताया है। अशोक पंडित ने पैपाराज़ी को मेहनती पेशेवर कहते हुए उनकी कवरेज शैली की आजादी पर सवाल न उठाने की बात कही।
  • नैतिकता का प्रश्न: वहीं, जया बच्चन का सवाल पैपाराज़ी की नैतिक सीमाओं पर केंद्रित है। वायरल कॉन्टेंट की दौड़ में आपत्तिजनक अवस्था की फोटो-वीडियो लेना और उन्हें ‘भड़काऊ’ या ‘संसेशनल ट्रीटमेंट’ देकर पेश करना पेशेवर नैतिकता के मानकों पर सवाल खड़ा करता है।

अनुशासन की हिमायती और सोशल मीडिया से दूरी

जया बच्चन सार्वजनिक मंचों पर अनुशासन और औपचारिकता के डिकोरम को बनाए रखने की प्रबल हिमायती रही हैं।

  • टेंपरामेंट का मुद्दा: सार्वजनिक सभाओं में फोटो खिंचवाने की अनापेक्षित कोशिशों पर उनकी नाराजगी उनके गरिष्ठ और गंभीर स्वभाव को दर्शाती है। उन्होंने साफ किया है कि हर सेलिब्रिटी को एक ही टेंपरामेंट में नहीं आंका जा सकता।
  • नफरत से बेपरवाह: जया बच्चन ने सोशल मीडिया पर अपने खिलाफ फैलाई जाने वाली नफरत पर बेपरवाह रहते हुए कहा कि वह सोशल मीडिया को गंभीरता से नहीं लेतीं और न ही उससे प्रभावित होती हैं। यही वजह है कि वह इन प्लेटफॉर्म्स से दूर रहती हैं।

पैपाराज़ी की ज़रूरत और पीआर का खेल

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के बूम ने पैपाराज़ी के कामकाज के दायरे को बढ़ा दिया है, जिससे इंडस्ट्री का एक बड़ा समूह अब पब्लिसिटी के लिए पैपाराज़ी पर निर्भर है।

  • प्रचार का साधन: संस्थागत मीडिया के अभाव में तत्काल पब्लिसिटी के लिए पैपाराज़ी की ज़रूरत महसूस होती है। कई सितारे अपने प्रोडक्ट या अपकपिंग प्रोजेक्ट के प्रचार-प्रसार के लिए पीआर कंपनियों के जरिए बकायदा उन्हें बुलाते भी हैं।
  • अनुमति का प्रश्न: जया बच्चन ने दो टूक कहा कि सेलिब्रिटी से पहले अनुमति लेकर ही फोटो खींचनी चाहिए। एयरपोर्ट पर पैपाराज़ी को बुलाने के सवाल पर उन्होंने जवाब दिया कि अगर ऐसा करना पड़े तो सेलिब्रिटी को अपनी स्टारडम पर सोचना चाहिए।

यह विवाद सेलिब्रिटी प्राइवेसी, मीडिया नैतिकता और डिजिटल पब्लिसिटी की अनिवार्यता के बीच की जटिल रेखा को फिर से खींचता है।

Uma Pathak

Uma Pathak

About Author

उमा पाठक ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से मास कम्युनिकेशन में स्नातक और बीएचयू से हिन्दी पत्रकारिता में परास्नातक किया है। पाँच वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली उमा ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएँ दी हैं। उमा पत्रकारिता में गहराई और निष्पक्षता के लिए जानी जाती हैं।

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