द लोकतंत्र : दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा मोबाइल हैंडसेट निर्माताओं को ‘संचार साथी’ ऐप को सभी नए उपकरणों में प्री-इंस्टॉल करने का सख़्त निर्देश जारी करना साइबर सुरक्षा और निजता (Privacy) के मौलिक अधिकार के बीच एक गहरा विवाद बन गया है। सरकार का दावा है कि यह कदम साइबर धोखाधड़ी को रोकने, जाली या डुप्लीकेट आईएमईआई (IMEI) वाले उपकरणों की समस्या से निपटने और दूरसंचार साइबर सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। हालांकि, विपक्षी दलों ने इसे ‘बिग ब्रदर’ की निगरानी और असंवैधानिक करार दिया है।
सरकारी पक्ष: सुरक्षा और IMEI का महत्व
DoT का प्राथमिक उद्देश्य दूरसंचार सेवा का गलत इस्तेमाल रोकना और उपयोगकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करना है।
- IMEI सत्यापन: संचार साथी पोर्टल और ऐप नागरिकों को IMEI नंबर के जरिए मोबाइल हैंडसेट की वास्तविकता (Genuineness) जाँचने की सुविधा देता है। डुप्लीकेट या छेड़छाड़ किए गए आईएमईआई नेटवर्क में गंभीर खतरा पैदा करते हैं।
- उपयोगिता: यह ऐप चोरी हुए या ब्लैकलिस्टेड उपकरणों को पुनः बेचे जाने के मामलों की जांच करने, खोए/चोरी हुए हैंडसेट की जानकारी देने और अपने नाम पर रजिस्टर्ड मोबाइल कनेक्शनों की जांच करने में मदद करता है।
- कानूनी आधार: DoT ने टेलीकम्युनिकेशन एक्ट 2023 का हवाला दिया है, जिसके तहत IMEI से छेड़छाड़ गैर-जमानती अपराध है और इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है।
विपक्ष का आरोप: निजता पर हमला
सरकारी तर्क के विपरीत, विपक्षी नेताओं ने इस कदम को सीधे संवैधानिक और मौलिक अधिकारों के विरुद्ध बताया है।
- निजता का उल्लंघन: कांग्रेस जनरल सेक्रेटरी के सी वेणुगोपाल ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक जरूरी हिस्सा है। उन्होंने इस निर्देश को ‘असंवैधानिक’ से भी परे बताया है।
- निगरानी का टूल: विपक्ष का आरोप है कि एक प्री-लोडेड सरकारी ऐप जिसे अनइंस्टॉल नहीं किया जा सकता, हर भारतीय पर नज़र रखने का एक डरावना टूल है, जो हर नागरिक के हर मूमेंट, बातचीत और फैसले पर नज़र रखने का तरीका है। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इसे “पेगासस++” करार दिया है।
DoT ने निर्माताओं को आदेश का पालन करने के लिए 90 दिन का समय दिया है। यह विवाद स्पष्ट करता है कि डिजिटल युग में साइबर सुरक्षा की आवश्यकता और नागरिकों की निजता के अधिकार के बीच एक संवेदनशील संतुलन बनाना कितना कठिन है। इस निर्देश के खिलाफ जल्द ही उच्च न्यायालयों में कानूनी चुनौती दी जाने की संभावना है, जहाँ संविधान के मूल सिद्धांतों के संदर्भ में सरकार के इस फैसले की वैधता पर निर्णय लिया जाएगा।

