द लोकतंत्र : बिहार की राजनीति में मंगलवार (2 दिसंबर) का दिन सत्ता समीकरणों में एक महत्वपूर्ण बदलाव का गवाह बना। वरिष्ठ बीजेपी विधायक प्रेम कुमार को बिहार विधानसभा का नया स्पीकर निर्विरोध चुना गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने परंपरा का निर्वाह करते हुए उन्हें स्पीकर के आसन तक पहुँचाया। सोमवार को प्रेम कुमार के नामांकन के विरुद्ध विपक्ष की ओर से किसी भी उम्मीदवार का न आना उनकी जीत को औपचारिक सहमति प्रदान करता है। यह निर्विरोध चयन नई राजनीतिक परिस्थिति में बीजेपी के लिए गहरे मायने रखता है।
बदलते समीकरण: बीजेपी का वर्चस्व
विधानसभा चुनाव के परिणामों ने गठबंधन की गतिशीलता को पूरी तरह से बदल दिया है। अब तक नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ‘बड़े भाई’ की भूमिका में रहती थी, लेकिन इस बार बीजेपी 89 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि जेडीयू 85 सीटों पर सिमट गई।
- सत्ता की चाबी: इसी संख्या बल के कारण गठबंधन में बीजेपी की भूमिका पहले से कहीं अधिक प्रभावशाली हो गई है। विधानसभा स्पीकर का पद हासिल करना इस स्थिति को और मजबूत करता है।
- प्रमुख पदों पर बीजेपी का कब्जा: नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं, लेकिन सरकार के बाकी प्रमुख और निर्णायक पद बीजेपी के पास हैं—
- दो डिप्टी सीएम (सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा)
- गृह विभाग
- अब विधानसभा स्पीकर
इन महत्वपूर्ण पदों के बीजेपी के खाते में जाने से यह साफ हो गया है कि मौजूदा सरकार में बीजेपी निर्णायक स्थिति में है।
प्रेम कुमार का अनुभव और विपक्ष की सहमति
प्रेम कुमार, जो लंबे समय से सक्रिय राजनीतिज्ञ रहे हैं और 9वीं बार विधायक चुने गए हैं, शांत, संतुलित और अनुभवशील नेता की छवि रखते हैं।
- निर्विरोध चयन का महत्व: विपक्ष की ओर से उम्मीदवार न उतारना इस बात का संकेत है कि वे सदन के संचालन के लिए प्रेम कुमार के नाम पर सहमति जता चुके हैं। यह निर्विरोध चयन सदन के सुचारू संचालन के लिए सकारात्मक माना जा सकता है।
विधानसभा स्पीकर का पद सदन में न केवल संवैधानिक नियंत्रण प्रदान करता है, बल्कि विपक्ष के विरोध और प्रस्तावों के निपटान में भी महत्वपूर्ण रणनीतिक शक्ति प्रदान करता है। बिहार की राजनीति में बीजेपी के बढ़े इस प्रभाव से आने वाले दिनों में कई नए समीकरण पैदा हो सकते हैं, जहाँ सरकार की प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने में बीजेपी की पकड़ अभूतपूर्व मजबूत होगी।

