द लोकतंत्र : सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई नगर पालिका द्वारा चेन्नई में अवैध रूप से बनी ‘मस्जिद ए हिदाया’ और मदरसे को गिराने के हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि यह ढांचा पूरी तरह से अवैध रूप से बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को जमीन पर कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं है, भले ही इसका असली मालिक सरकार इसका उपयोग कर रही हो या नहीं। अदालत ने मौखिक तौर पर टिप्पणी की कि चाहे मंदिर हो या मस्जिद, अनाधिकृत निर्माण की इजाजत नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 फरवरी उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें हाई कोर्ट की ओर से अवैध संरचना को ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस कार्य के लिए कुछ दिनों की मोहलत भी दी है। जस्टिस सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की बेंच ने मस्जिद के निर्माण को अवैध मानते हुए उस जमीन पर संरचनाओं को हटाने के लिए 31 मई तक का समय दिया।
याचिकाकर्ता ट्रस्ट एक अनधिकृत कब्जाधारी
कोर्ट के मुताबिक, इस मामले में याची हाईडा मुस्लिम वेल्फ़ेट ट्रस्ट (याचिकाकर्ता) संपत्ति का मालिक नहीं था। जिस जमीन पर अनधिकृत कब्जा है वो असल चेन्नई मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीएमडीए) की है। याचिकाकर्ता अनाधिकृत कब्जाधारी है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कभी भी भवन निर्माण योजनाओं की मंजूरी के लिए आवेदन नहीं किया। 9 दिसंबर, 2020 को सीएमडीए अधिकारियों द्वारा नोटिस दिए जाने के बावजूद अवैध निर्माण करता रहा।
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बता दें, सर्वोच्च न्यायालय मद्रास हाईकोर्ट द्वारा 22 नवंबर, 2023 को दिए गए फैसले के खिलाफ मुस्लिमों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बेंच ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि अदालत ने पहले भी आदेश जारी कर राज्यों को सार्वजनिक जमीन पर, विशेषकर धार्मिक संरचनाओं के रूप में अनधिकृत निर्माण को रोकने का निर्देश दिया था।
कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर स्थित सभी धार्मिक स्थानों को ध्वस्त करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही याचिकाकर्ता मुस्लिम संगठन को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे अपनी अनधिकृत मस्जिद को वहां से किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने का आदेश दिया।