Advertisement Carousel
Spiritual

देव दर्शन के बाद मंदिर से लौटते ही क्यों नहीं धोने चाहिए हाथ-पैर? जानें दिव्य ऊर्जा को बनाए रखने के शास्त्रीय कारण

The loktnatra

द लोकतंत्र : हिंदू धर्म में मंदिर को सबसे पावन और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना गया है। श्रद्धालु यहां भगवान की पूजा-आराधना, प्रार्थना और मन की शांति के लिए पहुँचते हैं। मान्यता है कि मंदिर के दिव्य वातावरण और वहाँ होने वाले मंत्रों के कंपन से शरीर और मन तुरंत प्रभावित होता है और सकारात्मकता से घिर जाता है। यही कारण है कि देव दर्शन के पश्चात भी कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक माना गया है, जिसमें तुरंत हाथ-पैर न धोना भी शामिल है।

मंदिर से लौटकर तुरंत जल स्पर्श क्यों नहीं?

शास्त्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मंदिर का वातावरण दिव्य और अत्यंत सकारात्मक होता है। जब कोई व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है, तो वहाँ की ऊर्जा उसके शरीर में प्रवेश करती है।

  • ऊर्जा को ठहरने का समय: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिव्य और पावन ऊर्जा के प्रभाव को शरीर पर कुछ समय तक अवश्य रहने देना चाहिए। यदि मंदिर से आने के तुरंत बाद हाथ-पैर धो लिए जाते हैं, तो यह सकारात्मक ऊर्जा कम हो जाती है। इसीलिए शास्त्रों में इसे उचित नहीं माना गया है।
  • आभा की मजबूती: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मंदिर की ऊर्जा व्यक्ति की आभा (Aura) को मजबूत करती है और सकारात्मकता से भर देती है। तुरंत पानी छूने पर यह आभा कमजोर हो सकती है।

स्नान न करने का नियम और उसके लाभ

अनेक लोग मंदिर से आकर स्नान भी कर लेते हैं। धार्मिक ग्रंथों में इसे भी अशुभ या अनुचित बताया गया है। कहा जाता है कि स्नान करने से मंदिर जाने से शरीर को जो दिव्य प्रभाव और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हुई है, वह कम हो सकती है।

  • सकारात्मक ऊर्जा को महसूस करें: कई धार्मिक ग्रंथों में मंदिर से लौटने के बाद कुछ देर शांत बैठने और मन में भगवान को याद करने की बात कही गई है। यह सकारात्मक ऊर्जा मन को शांत करती है और दिनभर के कार्यों में शुभता देती है।

मंदिर से लौटकर किए जाने वाले सही कार्य

मंदिर दर्शन के बाद घर आने पर निम्न नियमों का पालन करना उचित माना गया है:

  • शांत बैठें: घर आकर तुरंत किसी कार्य में न लगें। कुछ मिनट शांत बैठें।
  • प्रार्थना करें: मन ही मन भगवान का नाम लें और प्रार्थना करें। मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा को अपने अंदर महसूस करें।
  • आशीर्वाद का वितरण: यदि आप मंदिर से प्रसाद या भस्म लाए हैं, तो उसे ग्रहण करें और अन्य सदस्यों में वितरित करें।

मंदिर से लौटने के बाद का समय आध्यात्मिक शांति और दिव्य प्रभाव को आत्मसात करने का होता है, न कि तुरंत जल स्पर्श करके उस प्रभाव को समाप्त करने का।

Uma Pathak

Uma Pathak

About Author

उमा पाठक ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से मास कम्युनिकेशन में स्नातक और बीएचयू से हिन्दी पत्रकारिता में परास्नातक किया है। पाँच वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली उमा ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएँ दी हैं। उमा पत्रकारिता में गहराई और निष्पक्षता के लिए जानी जाती हैं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like

साधना के चार महीने
Spiritual

Chaturmas 2025: चार महीने की साधना, संयम और सात्विक जीवन का शुभ आरंभ

द लोकतंत्र: चातुर्मास 2025 की शुरुआत 6 जुलाई से हो चुकी है, और यह 1 नवंबर 2025 तक चलेगा। यह चार
SUN SET
Spiritual

संध्याकाल में न करें इन चीजों का लेन-देन, वरना लौट सकती हैं मां लक्ष्मी

द लोकतंत्र : हिंदू धर्म में संध्याकाल यानी शाम का समय देवी लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है। यह वक्त