द लोकतंत्र : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भले ही तीसरी बार सरकार बनाने और 400 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही हो लेकिन लगता है कि ख़ुद बीजेपी के सांसदों को पार्टी के इस दावे पर यक़ीन नहीं है। दरअसल, दो दिन पूर्व भाजपा के दो सांसदों ने टिकट मिलने के बावजूद अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट गए। वडोदरा लोकसभा सीट से टिकट पाने वाली मौजूदा सांसद रंजन भट्ट और साबरकांठा सीट से उम्मीदवार भीकाजी ठाकोर ने निजी कारणों से चुनाव न लड़ने की घोषणा की।
यूपी से दो मौजूदा सांसदों ने भी व्यक्तिगत कारणों का हवाला देकर अपनी दावेदारी ख़त्म की
टिकट की घोषणा से पूर्व ही गाजियाबाद से दो बार सांसद रहे जनरल वीके सिंह ने भी 2024 का चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा कानपुर से भाजपा सांसद सत्यदेव पचौरी ने भी चुनाव लड़ने में असमर्थता जतायी थी। हालाँकि, दोनों के इनकार के कुछ घंटों बाद ही भाजपा की सूची आ गई और गाजियाबाद में दो बार के सांसद वी के सिंह की जगह अतुल गर्ग प्रत्याशी घोषित किए गए वहीं कानपुर सीट पर सत्यदेव पचौरी की जगह रमेश अवस्थी को उम्मीदवार बनाया गया।
इसके पहले, बाराबंकी से सांसद उपेन्द्र सिंह रावत ने भी टिकट की घोषणा होने के बाद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। दरअसल, टिकट घोषित होने के बाद उपेन्द्र सिंह रावत का एक अश्लील एमएमएस वायरल हो गया था जिसके बाद उन्होंने निर्दोष साबित होने तक कोई भी चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला लिया था।
भोजपुरी गायक पवन सिंह ने भी वापस ले ली थी अपनी दावेदारी
भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल के आसनसोल लोकसभा सीट से भोजपुरी गायक पवन सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था। टिकट की घोषणा के साथ पवन सिंह ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर ख़ुशी भी ज़ाहिर की थी और शीर्ष नेतृत्व को धन्यवाद कहा था। लेकिन एक दिन बाद ही उन्होंने भी आसनसोल से चुनाव लड़ने में अपनी असमर्थता ज़ाहिर की थी। हालाँकि, इसके 10 दिन बाद ही भोजपुरी गायक पवन सिंह ने यू-टर्न लेते हुए कहा कि वह चुनाव लड़ेंगे। लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि पवन सिंह किस सीट और किस पार्टी से चुनाव लड़ेंगे। सूत्रों के मुताबिक़ वो आरजेडी से आरा सीट पर चुनाव लड़ने का गुणा गणित बैठा रहे हैं।
क्या भाजपा ने नहीं कराया था सर्वे?
ऐसा कहा जाता है कि भारतीय जनता पार्टी किसी भी प्रत्याशी को टिकट देने से पूर्व कई सारे फ़ैक्टर्स पर काम करती है। इसके अलावा पार्टी द्वारा आंतरिक सर्वे में मिले इनपुट्स के आधार पर भी फ़ैसले लिये जाते हैं। लेकिन, जिस तरह भाजपा के सांसदों द्वारा टिकट वापस लौटाया जा रहा है उससे यह स्पष्ट है कि पार्टी 400 पार के नारे को लेकर ओवर कॉन्फिडेंस में फ़ैसले ले रही है। या फिर, ख़ुद भाजपा के सांसदों को अपनी जीत को लेकर संशय है और उन्हें पार्टी के नारों और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच का अंतर मालूम है इसलिए वे अपनी दावेदारी से पीछे हट रहे हैं।
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वडोदरा से मौजूदा सांसद रंजनबेन भट्ट पहली बार 2014 में उपचुनावों में वडोदरा सांसद चुनी गई थी। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वडोदरा के साथ वाराणसी से जीते थे। बाद में उन्होंने वडोदरा सीट खाली कर दिया था। इसके बाद उपचुनाव में रंजनबेन भट्ट को मौका मिला था। पार्टी ने उन्हें 2019 में रिपीट किया था। तब वे बड़े मार्जिन से जीती थीं। इसके बाद पाटी ने उन्हें तीसरी बार फिर टिकट दिया था। लेकिन, इस बार उनका काफ़ी विरोध रहा और स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा टिकट बदलने की माँग की गई। कई जगह विरोध में पोस्टर्स लगे जिसके बाद उन्होंने न लड़ने का फ़ैसला किया।