द लोकतंत्र : हाथरस हादसे की चर्चा पूरे देशभर में हो रही है। हाथरस में नारायण साकार हरि उर्फ़ सूरजपाल उर्फ़ भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में 121 लोगों की जान चली गई। एक तरफ़ जहां लोगों के बीच इस भयावह हादसे को लेकर गहरा आक्रोश है वहीं दूसरी तरफ शुरू से पुलिसिया कार्यवाही और जाँच में बाबा को विशेष रियायत दी गई। यहाँ तक की एफआईआर में बाबा का नाम तक नहीं डाला गया जबकि इस पूरे प्रकरण में प्राथमिक रूप से बाबा सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल कि आख़िर बाबा नारायण साकार हरि को लेकर ‘सियासी जमात’ इतनी उदार क्यों है और क्यों कोई बाबा का नाम सीधे तौर पर नहीं ले रहा? चलिए, हम आपको विस्तार से बताते हैं कि बाबा पर इस सियासी मेहरबानी की असली वजह क्या है।
तो इसलिए नारायण साकार हरि के गिरेबान तक नहीं पहुँच रहे पुलिस के हाथ
बीते मंगलवार को हाथरस में सत्संग के बाद बाबा नारायण साकार हरि के चरण रज लेने के लिए भीड़ बेक़ाबू हो गई थी जिसके बाद भगदड़ मचने से हुए हादसे में 121 लोगों की जान चली गई। बाबा के चरण रज से भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं यह भावना उनके भक्तों के ज़ेहन में भरी गई थी। बाबा नारायण साकार हरि अपने भक्तों के बीच भगवान सरीखा है। अगर इस पूरे प्रकरण पर आपने नज़र बनायी होगी तो आपको बहुत से विज़ुअल्स देखने को मिले होंगे जिसमें बाबा भोले यानी नारायण साकार हरि के भक्त बाबा को भगवान बताते हुए दिखेंगे। जरा सोचिए बाबा के भक्तों की दीवानगी उसके प्रति किस हद तक है कि इतने गंभीर हादसे में अपने परिजनों की जान गँवाने के बावजूद लोग अब भी यह मानने को तैयार नहीं कि बाबा के सत्संग में उन्हें ज़िंदगी भर का ग़म मिल गया है।
दरअसल, बाबा के भक्तों के जातिगत बैकग्राउंड को जब टटोलेंगे तब आपको समझ में आ जाएगा कि बाबा नारायण साकार हरि उर्फ़ सूरजपाल उर्फ़ बाबा भोले का सियासी रसूख़ क्या है। दरअसल बाबा भोले जिस जाति वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है वह एक स्ट्रॉंग पॉलिटिकल वोट बैंक के रूप में भारतीय राजनीति में सीधे हस्तक्षेप करती है। एक औसत समझ का व्यक्ति भी अगर इस पूरे प्रकरण में शासन और प्रशासन की कार्यवाहियों और अबतक की प्रगति को देखेगा तो समझ जाएगा कि किस तरह सियासी तौर पर बाबा को बचाने की कोशिश की जा रही है। साथ ही इस मामले में आरोपी वह लोग बनाये जा रहे हैं जो बाबा के मायाजाल के महज़ मोहरे भर हैं।
दलित वोट बैंक का पॉवर सेंटर है बाबा नारायण साकार हरि
राजनीति में वेदना और संवेदना की कोई जगह नहीं होती और हाथरस हादसे में सरकार के अप्रोच को देखकर यह बात स्थापित हो गई है। दरअसल बाबा नारायण साकार हरि का वर्चस्व दलित, पिछड़ों और अतिपिछड़ों में बेहद ज़्यादा है। बाबा के भक्तों का यह वह वर्ग है जो बाबा को भगवान मानता है। अगर आपकी थोड़ी बहुत भी राजनीति में दिलचस्पी है और आप वोटों का गणित समझते हैं तो आप समझ जाएँगे की बाबा सूरजपाल यानी नारायण साकार हरि दलित और पिछड़े जाति के वोटों का सबसे बड़ा स्टेकहोल्डर है। योगी सरकार की कार्यवाहियों को छोड़िये आज सुबह जब राहुल गांधी ने भी हाथरस हादसे में पीड़ित परिवार से मुलाक़ात की तो बाबा नारायण साकार हरि को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की। उन्होंने बस मुआवज़े की राशि बढ़ाए जाने पर ज़ोर दिया और इस मामले में राजनीतीकरण न होने की बात कही।
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दरअसल, इस मामले में राजनीति न होना ही असल राजनीति है जो दलों को एक बड़े वोट बैंक से जोड़ती है। नारायण साकार हरि यानी बाबा सूरजपाल की सियासी हैसियत के सामने सभी राजनीतिक दलों ने घुटने टेक दिये हैं। कोई भी सियासी दल इस मामले में उतनी ही टिप्पणी कर रहा है जिससे उनके वोट बैंक पर असर न पड़े। मौतों का क्या है 150 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में आदमी की क़ीमत तभी तक है जबतक वह ज़िंदा है और वोट दे सकता है।