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जॉब नहीं है, युवा आत्महत्या कर रहे हैं, अन-एम्प्लॉयमेंट के मुद्दे पर क्या कर रही है मोदी सरकार ?

There are no jobs, youth are committing suicide, what is the Modi government doing on the issue of unemployment?

द लोकतंत्र : दो दिन पूर्व बनारस में एक होटल में एक युवक ने आत्महत्या कर ली। मृतक हरीश ने MBA किया था। वह अन-एम्प्लॉयमेंट के कारण अवसाद ग्रस्त रहता था और नशे का आदी भी हो गया था। वहीं, पति की आत्महत्या की ख़बर सुनने के बाद पत्नी संचिता अवसाद में चली गई जिसके बाद उसने भी छत से कूदकर मौत को गले लगा लिया। यहाँ बता दें, दो साल पहले ही हरीश और संचिता की शादी हुई थी। शादी के कुछ महीने बाद किन्ही कारणों से हरीश ने नौकरी छोड़ दी थी। परिजनों के मुताबिक़ वह एक बैंक में काम करता था। इसके बाद से उसे नौकरी नहीं मिल पा रही थी। बेरोज़गारी के कारण युवाओं में बढ़ रहे आत्महत्या की प्रवृत्ति ने कई सवाल खड़े किए हैं जिसका जवाब फ़िलहाल सरकार के पास नहीं है।

लगभग 83 फ़ीसद शिक्षित युवा बेरोज़गार

कुछ माह पूर्व इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) ने इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट (IHD) के साथ मिलकर ‘इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024’ पब्लिश की थी। रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि भारत में अगर 100 लोग बेरोजगार हैं, तो उसमें से 83 युवा हैं। 83 बेरोज़गार युवाओं में से अधिकांश शिक्षित हैं। अब दूसरी रिपोर्ट की बात करते हैं। सिटीग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले 10 वर्षों में भारत को रोजगार के पर्याप्त मौके बनाने में मुश्किल हो सकती है। हालाँकि, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सिटी ग्रुप की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। सिटी ग्रुप की रिपोर्ट में भारत में रोजगार के मौके बनने की रफ्तार पर सवाल उठाए गए थे। 

भारत में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आर्थिक विकास दर और रोजगार सृजन से जुड़े कुछ आंकड़ों का हवाला देते हुए मंगलवार को आरोप लगाया कि युवाओं को बेरोज़गार बनाए रखना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का एकमात्र मिशन है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट कर लिखा, मोदी सरकार, भले ही बेरोज़गारी पर सिटी ग्रुप जैसी स्वतंत्र आर्थिक रिपोर्टों को नकार रही हो, पर सरकारी आंकड़ों को कैसे नकारेगी? सच ये है कि पिछले 10 साल में करोड़ों युवाओं के सपनों को चकनाचूर करने की ज़िम्मेदार केवल मोदी सरकार पर है।’

बता दें, आईएलओ की रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि देश के कुल बेरोजगार युवाओं में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या भी वर्ष 2000 के मुकाबले अब डबल हो चुकी है। एक तरफ़ साल 2000 में पढ़े-लिखे युवा बेरोजगारों की संख्या कुल युवा बेरोजगारों में जहां 35.2 प्रतिशत थी वहीं साल 2022 में ये आँकड़े बढ़कर 65.7 प्रतिशत हो गई।

बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में घट रहे नौकरियों के अवसर

एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2023 की चौथी तिमाही के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में 8.4 फीसदी वृद्धि हुई। मोदी सरकार लगातार 5 ट्रिलियन इकॉनमी बनाने के लक्ष्य को लेकर काम करने का दावा कर रही है लेकिन क्या इन दावों में करोड़ों युवाओं के लिए रोज़गार की संभावनाओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा? यह सवाल अनायास ही नहीं है बल्कि इसके पीछे भी डराने वाले आँकड़े हैं जो इस बात की तस्दीक़ करती है।

सिटीग्रुप ने भारत में रोजगार के बारे में हाल में जारी एक रिपोर्ट में अनुमान जताया है कि 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि करने पर भी भारत को रोजगार के पर्याप्त अवसर मुहैया कराने में समस्या पेश आ सकती है लेकिन सरकार इसे ख़ारिज करती है और अपने ही तर्क देती है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय का कहना है कि सिटीग्रुप की रिपोर्ट में आधिकारिक स्रोतों के पॉजिटिव ट्रेंड्स और आंकड़ों पर ध्यान नहीं दिया गया।

हर साल औसतन 02 करोड़ रोज़गार के अवसर

मंत्रालय के मुताबिक़, PLFS और आरबीआई के KLEMS डेटा का हवाला देकर कहा कि ‘भारत ने 2017-18 से 2021-22 के बीच 8 करोड़ से अधिक रोजगार के मौके बनाए हैं। हर साल औसतन 2 करोड़ से अधिक एंप्लॉयमेंट जेनरेट हुआ है, वह भी तब, जब 2020-21 में वर्ल्ड इकॉनमी पर कोविड की मार पड़ी थी। इससे सिटीग्रुप की यह बात गलत साबित होती है कि भारत में पर्याप्त रोजगार जेनरेट करने की क्षमता नहीं है।

आत्महत्या के आँकड़े सरकार के रोज़गार के दावों के आँकड़ो पर भारी

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2016 से 2019 के बीच बेरोजगारी के कारण आत्महत्या के मामलों में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एनसीआरबी के रिकॉर्ड बताते हैं कि 2019 में देश में बेरोजगारी के कारण 2,851 लोगों ने आत्महत्या की। 2016 में यह आंकड़ा 2,298 था। यह भी सरकारी डेटा है जो बताती है कि बेरोज़गारी की समस्या कितने भयावह रूप से युवाओं की ज़िंदगी तबाह कर रही है और सरकार रोज़गार के आँकड़ों का हवाला देकर इस समस्या से मुँह फेरने की कोशिश कर रही है।

Sudeept Mani Tripathi

Sudeept Mani Tripathi

About Author

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हिंदी पत्रकारिता में परास्नातक। द लोकतंत्र मीडिया फाउंडेशन के फाउंडर । राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर लिखता हूं। घूमने का शौक है।

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