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उत्तरप्रदेश में ‘सीएम योगी’ के खिलाफ कौन रच रहा है चक्रव्यूह, उपचुनाव के नतीजों से तय होगा ‘आदित्यनाथ’ का भविष्य

Who is plotting against the 'CM' in Uttar Pradesh, the results of the by-elections will decide Yogi's future

द लोकतंत्र : लोकसभा चुनाव के पूर्व से ही उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ और गुजरात लॉबी के बीच के टकराव की अफ़वाह ख़बरों के रूप में खूब तैर रही है। इन अफ़वाहों की वजह से ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अच्छा ख़ासा डैमेज झेलना पड़ा। दरअसल, उत्तर प्रदेश में सीएम योगी की प्रशासनिक क्षमता की तारीफ़ दबे ज़ुबान उनके विरोधी भी करते हैं। इस बात से प्रदेश का हर व्यक्ति सहमति रखता है कि सीएम योगी के कार्यकाल में कानून व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं। यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मजबूत और प्रभावी नेतृत्व से राज्य को एक नई दिशा दी है और जनता का विश्वास और समर्थन प्राप्त किया है। ऐसे में, केंद्रीय नेतृत्व और योगी सरकार में खींचतान की ख़बरों ने भाजपा को यूपी में बैकफ़ुट पर धकेल दिया।

योगी सरकार और केंद्रीय नेतृत्व में टकराव की ख़बरों का सूत्रधार कौन?

अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल पर लौटते हैं कि आख़िर वह कौन लोग हैं जो सीएम योगी के खिलाफ मीडिया में ख़बरें प्लांट कर रहे हैं और उनके इर्द गिर्द चक्रव्यूह रच रच रहे हैं? क्या वाक़ई सीएम योगी और केंद्रीय नेतृत्व के बीच किसी तरह की टकराव या अविश्वास की स्थिति है? और अगर है तो क्या केंद्रीय नेतृत्व योगी को हटाकर यूपी में आने वाले विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगा? योगी के अलावा विकल्प क्या है? ये कुछ सवाल और उसके ढेरों जवाब अलग अलग आँकड़ो और आँकलन के साथ मौजूद हैं। पहला सवाल, योगी और केंद्रीय नेतृत्व के बीच टकराव की ख़बरें कहाँ से आ रही हैं? कौन है इसका सूत्रधार? तो, आपको याद ही होगा कि लोकसभा चुनाव के आख़िरी चरण के ठीक पहले विपक्ष तेज़ी से इस बात को प्रचारित करने लगा था कि चुनाव जीतते ही पीएम मोदी और अमित शाह यूपी के सियासी परिदृश्य में योगी को कमजोर करेंगे। अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल समेत कई विपक्षी नेताओं से इस बात को दोहराया था।

दरअसल, यह सारा खेल नैरेटिव बिल्ड करने और जनता के बीच भ्रम और सरकार के प्रति अविश्वास पैदा करने के उदेश्य से सोच समझकर खेला जा रहा था। सीएम योगी से अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल को क्यों और कैसी हमदर्दी होने लगी जो वे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कुर्सी की चिंता करने लगे? उल्टे अगर ऐसी स्थिति बनती है और वाक़ई केंद्रीय नेतृत्व सीएम योगी को हटाना चाहता है तो इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी को ही होगा।

दरअसल, उन्हें योगी की कुर्सी की चिंता है ही नहीं बल्कि वो इस अफ़वाह को हवा देकर और भड़काना चाहते थे जिससे जनता के बीच यह स्पष्ट संदेश जाए कि डबल इंजन की सरकार का आपसी तालमेल कमजोर हो गया है और दोनों दो दिशाओं में भागकर एक दूसरे को डिरेल करना चाहते है। विपक्ष ने जैसा सोचा बिलकुल वैसा ही हुआ और यह नैरेटिव स्ट्रांगली बिल्ड हो गया कि योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय नेतृत्व के बीच में वाक़ई कुछ भी सही नहीं है। इसके अलावा विपक्ष ने कई मुद्दों पर भी योगी सरकार को बैकफ़ुट पर धकेलने का काम किया जिसका काउंटर संगठन या सरकार नहीं कर पायी।

क्या वाक़ई केंद्र और योगी सरकार के बीच अविश्वास की स्थिति?

केंद्रीय नेतृत्व और योगी सरकार के बीच टकराव की बातें अनायास ही नहीं उठ रहे। यह एक ऐसा सवाल है जो कई मौक़ों पर लोगों के ज़ेहन में उठने लगती हैं। मसलन, 2022 यूपी विधानसभा चुनाव के पहले और कोरोना महामारी के बाद ठीक ऐसी ही स्थिति यूपी में थी जब लग रहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार से योगी आदित्यनाथ की विदाई कर ही दी जाएगी। उस दौरान भी यूपी और दिल्ली में लगातार बैठकों के दौर चले और अंत में प्रधानमंत्री मोदी ने सीएम योगी के कंधे पर हाथ रखकर बता दिया था कि यूपी में ‘ऑल इज वेल’ है और योगी कहीं नहीं जाने वाले। उस वक़्त भी संगठन और सरकार के बीच आपदा में अवसर तलाशने वाले बहुतेरे नेता दिल्ली-यूपी एक किए हुए थे।

परिस्थितियाँ अब भी कमोबेश वही उत्पन्न हो गई हैं। यूपी में लोकसभा चुनाव के दौरान एनडीए का सपा से भी कम सीटें आना और केंद्र में गठबंधन की मजबूरी में बंधना केंद्रीय नेतृत्व के गले उतर नहीं रही। यूपी में इस तगड़े झटके के बाद यह तो तय है कि बहुत से लोग संगठन और सरकार से पदमुक्त कर दिये जाएँगे। लेकिन, कब और किस तरह इसपर सियासी गुणा गणित बिठाया जा रहा है। यूपी सरकार में डिप्टी सीएम की हैसियत रखने वाले केशव प्रसाद मौर्य भी आपदा में अवसर तलाशते हुए यूपी-दिल्ली एक किए हुए हैं। संभवतः उन्हें भरोसा है कि केंद्रीय नेतृत्व उनकी प्रतिभा पहचानेगी और उन्हें बड़ी ज़िम्मेदारी देगी। सीएम योगी की बैठकों से दोनों डिप्टी सीएम की ग़ैर मौजूदगी बताती है कि यूपी के सियासी फ़लक में यह दोनों अपनी महत्वाकांक्षाओं को उड़ान देने के लिए अपने अपने मोहरे स्थापित कर रहे हैं। इस सियासी खींचतान में केशव प्रसाद मौर्य की एक गोपनीय चिट्ठी का भी ज़िक्र हो रहा है जिसमें ढेरों विधायकों के दस्तख़त मौजूद हैं जिन्होंने सीएम योगी की कार्यशैली पर असंतोष जताया है।

अति आत्मविश्वास बनी हार की वजह

वहीं दूसरी ओर, सीएम योगी आदित्यनाथ इस पूरे प्रकरण पर चुप हैं। उनकी चुप्पी भी यूपी की सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बनी हुई है। बीते दिनों, प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में सीएम योगी ने बस इतना भर कहा कि अति आत्मविश्वास की वजह से भाजपा को यूपी में नुक़सान उठाना पड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया पर हम विपक्ष के नैरेटिव को काउंटर करने में नाकाम रहे जिसकी वजह से भी हम कई सीटों पर हारे।

बीजेपी यूपी अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी के 15 पन्नों की रिपोर्ट में क्या?

यूपी में लोकसभा चुनाव के नतीजों ने संगठन और सरकार के बीच घट रहे विश्वास और तालमेल की पोल भी खोल कर रख दी। बीजेपी यूपी के प्रदेश अध्यक्ष ने यूपी में हार की कारणों का 15 पन्नों का रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंपा है जिसमें यह दावा किया गया है कि यूपी में बीजेपी की हार का ज़िम्मेदार प्रशासनिक मशीनरी है जिसकी वजह से जनता का भरोसा सरकार पर से कम हुआ है। भूपेन्द्र चौधरी की रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र भी किया गया है कि कार्यकर्ताओं के साथ प्रशासन का व्यवहार दुर्भाग्यपूर्ण रहा जिसकी वजह से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा। अपनी ही सरकार में कार्यकर्ता उपेक्षित और ठगा हुआ महसूस कर रहे थे जिससे जनता के बीच वे अपना विश्वास नहीं क़ायम कर पा रहे थे।

मतलब, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की रिपोर्ट में सीधे तौर पर योगी की प्रशासनिक क्षमताओं पर सवाल उठाया गया जिसमें प्रशासनिक निरंकुशता महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में दर्ज की गई थी। भूपेन्द्र चौधरी ने क़रीब 40 हज़ार से ज़्यादा कार्यकर्ताओं से बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की थी जिसे उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को सौंपा।

अपने ही हो गए हैं बेगाने

योगी सरकार की कार्यशैली पर सिर्फ़ विपक्ष ही नहीं ख़ुद सरकार और संगठन से जुड़े लोग भी सवाल उठा रहे हैं ऐसे में आने वाले दिनों में योगी सरकार की नीयति क्या होगी यह समय की कोख में है। हालाँकि इस सबके बीच योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए कमान सम्भाल ली है। इन दस सीटों पर जीत और हार योगी सरकार का भविष्य तय करेंगे तब तक के लिए केंद्रीय नेतृत्व द्वारा हर झगड़े को धरातल पर लाने से रोकने के लिए स्पष्ट निर्देश दिये हैं। सूचना यह भी है कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को अलग से केंद्रीय नेतृत्व द्वारा चेतावनी दी गई है कि वह ऐसा कोई बयान कहीं न दें जिससे यह लगे कि सरकार में आपसी तालमेल का अभाव है।

Team The Loktantra

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