द लोकतंत्र/ सौरभ त्यागी : भारत की आजादी का इतिहास केवल राजनीतिक संघर्षों और स्वतंत्रता आंदोलनों का ही नहीं, बल्कि एक गहरे वैचारिक और सामाजिक परिवर्तन का भी है। आजादी के समय जिस राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक बदलाव की आवश्यकता थी, उसे ‘नेहरू युग’ के रूप में जाना जाता है। इस दौर को समझने के लिए गांधी और नेहरू के विचारों और उनके योगदान को एक साथ रखना बेहद महत्वपूर्ण है। नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम के नेता और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सिद्धांतों को अपने दृष्टिकोण से आत्मसात कर एक आधुनिक भारत की नींव रखी, जिसे ‘नेहरू युग’ कहा जाता है।
समाजसेवी दादा धर्माधिकारी ने एक बार कहा था, “शिष्य, अनुयायी और उत्तराधिकारी में अंतर होता है। शिष्य केवल मार्गदर्शन स्वीकार करता है, अनुयायी उसका अनुसरण करता है, परंतु एक सच्चा उत्तराधिकारी अपने गुरु के विचारों को एक दिशा में समझकर, नई राहें तलाशता है।” नेहरू, गांधीजी के सिद्धांतों का अंधानुकरण नहीं करते थे, बल्कि उनकी दिशा को समझकर, भारतीय राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था में नए विचारों को साकार करने का प्रयास करते थे। इसीलिए, दोनों में कई बुनियादी सिद्धांतों पर असहमति भी रही, परंतु उनके उद्देश्य एक ही थे—एक ऐसे भारत का निर्माण, जो सभी वर्गों और समुदायों के लिए समान रूप से समृद्ध हो।
गांधीजी के सपनों का भारत एक समतामूलक समाज था, जिसमें हर नागरिक, चाहे वह राजा हो या रंक, समान अधिकार और सम्मान का हकदार हो। नेहरू ने गांधीजी के स्वराज को आधुनिक समाजवाद के रूप में ढाला, जिसमें समानता, न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों का समावेश हो। नेहरू के लिए स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी था। उनके नेतृत्व में भारत ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से न केवल औद्योगिक विकास पर बल दिया, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाने का प्रयास किया।
यद्यपि गांधी और नेहरू के विचारों में कई बिंदुओं पर असहमति थी, लेकिन मौलिक स्तर पर दोनों का दृष्टिकोण समान था। नेहरू, गांधीजी की तरह ही, सांप्रदायिकता, असमानता, और विभाजनकारी ताकतों के कट्टर विरोधी थे। नेहरूजी ने हमेशा सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़े होकर, एक धर्मनिरपेक्ष और एकजुट भारत के विचार को साकार करने का प्रयास किया। यह वही विचार था जिसे गांधीजी ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक जिया और जिसके लिए उन्होंने अपना सर्वस्व अर्पण किया।
नेहरू की दृष्टि : आधुनिक भारत का निर्माण
स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व संध्या पर, 14 अगस्त 1947 को, संविधान सभा में दिए गए अपने ऐतिहासिक भाषण में नेहरू ने कहा था, “जब आधी रात का घंटा बजेगा और सारी दुनिया सो रही होगी, तब भारत जागेगा और उसमें एक नई जिन्दगी का संचार होगा।” यह केवल एक भाषण नहीं, बल्कि एक सपने की घोषणा थी—एक नए भारत के निर्माण का सपना। नेहरू के नेतृत्व में भारत ने लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के सिद्धांतों पर आधारित संविधान को अपनाया, जो भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए एक मजबूत आधार बना।
नेहरू का समाजवाद कट्टरता से रहित था। वे भारत के आर्थिक विकास के लिए उद्योगों के राष्ट्रीयकरण और राज्य के नियंत्रण में रखने के पक्षधर थे। उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से औद्योगिक, वैज्ञानिक और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की। परंतु उन्होंने कभी भी गांधीजी के ग्रामोद्योग के महत्व को कमतर नहीं आंका। नेहरू ने बड़े उद्योगों के साथ-साथ खादी और ग्रामोद्योग को भी सशक्त बनाने पर जोर दिया। उनका मानना था कि “भारत जैसे देश में ग्रामोद्योग का विकास ठोस परिणाम देने के लिए आवश्यक है।”
नेहरू की विदेश नीति भी गांधीवादी मूल्यों पर आधारित थी। वे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रमुख प्रवक्ता बने और उन्होंने भारत को एक स्वतंत्र, तटस्थ, और शांति के पक्षधर राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। उन्होंने हमेशा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और शांति को बढ़ावा देने की कोशिश की। उनके पंचशील के सिद्धांतों ने भारत की विदेश नीति को एक नई दिशा दी, जो आज भी विश्व समुदाय में भारत की सशक्त उपस्थिति का आधार है।
नेहरू का साहित्यिक योगदान
नेहरू एक अद्वितीय राजनेता होने के साथ-साथ एक संवेदनशील लेखक भी थे। उनकी पुस्तक ‘The Discovery of India’ भारतीय सभ्यता और संस्कृति की खोज का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें उन्होंने सिंधु घाटी से लेकर आधुनिक भारत तक की यात्रा का वर्णन किया है। ‘Glimpses of World History’ और ‘मेरी कहानी’ जैसी पुस्तकें उनके व्यापक दृष्टिकोण, सामाजिक चेतना, और गहरे ऐतिहासिक अध्ययन को दर्शाती हैं।
गांधीजी की मृत्यु के बाद, नेहरू ने न केवल एक नेता के रूप में, बल्कि एक राष्ट्र निर्माता के रूप में गांधीजी के सपनों को साकार किया। उन्होंने भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी नींव को सुदृढ़ किया। उनके योगदान को केवल राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति के रूप में देखा जाना चाहिए। वे जानते थे कि एक राष्ट्र का निर्माण केवल कानून और संविधान से नहीं होता, बल्कि जनता के दिल और दिमाग में परिवर्तन लाने से होता है।
1960 में, लोकसभा में आणविक ऊर्जा पर चर्चा करते हुए नेहरू ने कहा था, “भविष्य में कोई भी सरकार इस शक्ति का दुरुपयोग नहीं करेगी, क्योंकि हमारी स्वतंत्रता का लक्ष्य केवल भारत की सेवा करना नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में शांति और मानवता के मूल्यों को बढ़ावा देना है।” यह नेहरूजी की दूरदर्शिता थी, जिसने भारत को एक सशक्त, आधुनिक, और शांतिपूर्ण राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
नेहरू युग केवल एक राजनीतिक अध्याय नहीं, बल्कि एक वैचारिक युग था, जिसमें गांधीजी के विचारों और नेहरू की दृष्टि ने मिलकर एक नए भारत का निर्माण किया। यह युग उन मूल्यों की पुनर्स्थापना का युग था, जो स्वतंत्रता, समानता, और न्याय के लिए गांधीजी ने प्रस्तुत किए थे। नेहरू ने इन्हीं मूल्यों को आगे बढ़ाते हुए भारत को एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया, जो न केवल अपनी सीमाओं के भीतर, बल्कि पूरे विश्व में शांति, सद्भाव और मानवता का संदेश दे सके।