द लोकतंत्र / सुदीप्त मणि त्रिपाठी : दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव है। उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में उपचुनाव भी है। सोशल मीडिया पर हिंदुत्व की बातें हो रही हैं। बंटेंगे तो कटेंगे, अस्सी बनाम बीस जैसे नारों को गढ़ा जा रहा है। बहराइच जैसे प्रयोग हो रहे हैं। इन प्रयोगों से उपजे सांप्रदायिक हिंसा में राम गोपाल मिश्र जैसे युवाओं की मौतें हो रही हैं। कुल मिलाकर एक स्टेज सेट कर आपको इंफ्लूएंस किया जा रहा है कि आप अपना वोट बेरोज़गारी, महँगायी, भ्रष्टाचार के मुद्दों पर नहीं बल्कि धार्मिक आधारों पर डालें।
दरअसल, कभी धर्म और कभी जाति के नाम पर चल रहे सियासी खेल में आम जनमानस सिर्फ़ मोहरा है, और जब तक आप इस सच्चाई को नहीं समझोगे, तब तक आपके ही वोट से आपको ही बर्बाद करने की पटकथा लिखी जाती रहेगी। इसे ऐसे समझिए, जैसे आप अपना वोट देकर अपने ही ‘डेथ वारंट’ पर साइन कर रहे हैं। आपका वोट, जो लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है, उसे आपकी ही कमजोरी में बदल दिया गया है। सांप्रदायिक नारों से, धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडे से आपकी आँखों पर पट्टी बांध दी गई है, और आप अपनी ही तक़दीर के खिलाफ़ खड़े हो गये हैं। हालाँकि बात शीशे की तरह साफ है, लेकिन समझने में आपको शायद ज़्यादा वक्त लग जाए। चलिए इसपर विस्तार से बात करते हैं।
ब्रो! आप नेताओं के लिए महज एक आंकड़ा हो
ब्रो! आप नेताओं के लिए आप महज एक आंकड़ा हो। वे आपको सांप्रदायिकता की लड़ाई में उलझाकर असली मुद्दों से दूर रखते हैं। आपकी लड़ाई होनी चाहिए आपकी खाली जेब से, बढ़ रही महँगायी से, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार से लेकिन आप लड़ रहे हो मुसलमान से। आपका असली दुश्मन न तो धर्म है, न जाति। असली दुश्मन वह व्यवस्था है, जो आपको लगातार गरीब बना रही है।
सोचिए, ग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट डिग्री लेकर आप क्या कर रहे हो? आप दरअसल, चपरासी/ वेटर की नौकरी के लिए लाइन में लगे हो, रिक्शा खींच रहे हो, सब्ज़ी बेच रहे हो और छोले समोसे पकौड़े की दुकान चला रहे हो। और थोड़ी बची फ़ुरसत में जय श्रीराम का नारा लगाकर ‘हरे झंडे’ को उतार रहे हो, ‘भगवा’ को लगा रहे हो और गोलियों से भून दिए जा रहे हो। आपमें से बहुत से लोग इसे तमाम तर्कों से जायज़ साबित करने की कोशिश करेंगे। राम गोपाल मिश्र और उन तमाम लोगों की मौतों का महिमामंडन होगा। लेकिन जरा ठहर कर सोचिए कि धर्म के नाम पर अपना रक्त बहाकर जिस हिंदुत्व की स्थापना के लिए आप अपना बलिदान दे रहे हो क्या यह बलिदान देना सिर्फ़ तुम्हारे हिस्से ही है?
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क्या कभी देखा है राजनाथ सिंह के पुत्र और मौजूदा विधायक पंकज सिंह को फरसा उठाकर, जय श्री राम का नारा लगाते हुए किसी मुसलमान के घर से उसका धार्मिक ध्वज उतारते हुए? कभी देखा है आपके इलाक़े का कोई कट्टर हिन्दुवादी विधायक जो पूरी लड़ाई अस्सी बनाम बीस का बताता है वह किसी दूसरे धर्म के आदमी को मारने जाता है? या फिर कथित हिन्दुत्ववादी पार्टी का कोई ज़िलाध्यक्ष ही कभी किसी अप्रिय सांप्रदायिक स्थिति/ दंगे में आपके हिस्से की गोली अपने सीने पर लेता है? नहीं देखा होगा क्योंकि यह काम आप जैसे बेरोज़गार और भटके हुए युवाओं के लिए आरक्षित है जिनके बल पर यह सभी सत्ता में हैं। यह आपको समझना ही होगा कि उनका लड़का टिकट पाकर विधायक, मंत्री, सांसद बनेगा और आप अपने रक्त से उनके लिये रास्ता बनाने में इस्तेमाल होंगे। इससे ज़्यादा आपकी तक़दीर में कुछ नहीं होगा।
जानते हैं, कल बनारस में पीएम मोदी ने कहा कि वे देश के 1 लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में लेकर आएँगे जिनके परिवार का राजनीति के साथ कोई लेना देना ना हो। वहीं दूसरी तरफ़ कल महाराष्ट्र में नेताओं के परिजनों को टिकट दिया गया है। किसी का भाई लड़ रहा है, किसी की पत्नी तो किसी के बेटे को भाजपा के द्वारा टिकट दिया गया है। उनके द्वारा जारी हर लिस्ट में आप ख़ुद को ढूढ़िये कि आप कहाँ हैं? सच्चाई यह है कि आप उनके लिए बस एक वोट हो, एक संख्या, एक चेहरा जो दंगों में जान देने के लिए है। सत्ता का असली खेल आपके ऊपर है, और आप इसे समझने से चूक रहे हो।
ब्रो! जानते हो मैं एकतरफ़ा सिर्फ़ तुम्हारी बात क्यों कर रहा हूँ?
मुझे यक़ीन है कि इसे पढ़कर आपमें से कई लोग कहेंगे कि मैं एकतरफ़ा बात क्यों कर रहा हूँ? क्यों सिर्फ़ बहुसंख्यक या सीधे तौर पर हिंदू समाज के युवाओं की बात कर रहा हूँ? क्यों सारा दोष और सारा ठीकरा तुम्हारे सर पर फोड़ रहा हूँ? वह इसलिए मेरे दोस्त क्योंकि मुझे इस बात का कंसर्न ज़्यादा है कि आपके हिस्से में क्या आ रहा है? मुझे आपकी ज़िंदगी की फ़िक्र है क्योंकि आपका अस्तित्व सिर्फ़ ‘कटने के लिए’ नहीं होनी चाहिए। आपको अगर अपने धर्म को मज़बूत करना है तो सबसे पहले ख़ुद को आर्थिक स्तर पर मज़बूत करिए। आपस के जातिगत विद्वेष कम कीजिए। अच्छी नौकरी करिए, अच्छा व्यवसाय स्थापित कीजिए, अपने आस पास के अपने ही लोगों की मदद कीजिए, उन्हें आगे बढ़ाइए। अगर आप मज़बूत होंगे तो बाक़ी हर संभावित बुरी से बुरी परिस्थिति भी आपके सामने कमजोर होगी।
जानते हैं, मुझे बहुत कोफ़्त होती है जब मैं यह देखता हूँ कि आप उस लड़ाई में खेत हो रहे हो जो आपकी कभी थी ही नहीं। आपके लड़ने, मरने, कटने से क्या बदल जाएगा? आप जिसके ख़िलाफ़ लड़ रहे हो वह संवैधानिक तौर पर इसी देश के नागरिक हैं। और, यह वह सच है जिसे आप चाहकर भी कभी नहीं बदल सकते। यह बात आपकी सरकार भी जानती है लेकिन बस आप समझना नहीं चाह रहे। आपने जिनको चुनकर भेजा है यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि वह आपको सुरक्षित माहौल और अच्छी ज़िंदगी दें। और, अगर वो बहकाकर उस लड़ाई में आपको लड़ने भेज रहे हैं जो आपकी है ही नहीं तो समझ जाइए आपने गलत को चुनकर सत्ता दे दी है जो आपको सिलसिलेवार मूर्ख बनाये जा रहा है। उम्मीद है इतने शब्द खर्च कर मैं आपको थोड़ा बहुत समझा पाने में कामयाब हो सकूँ।