द लोकतंत्र : देश के थोक बाजार से आम नागरिकों के लिए बड़ी आर्थिक राहत की खबर सामने आई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2025 में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index – WPI) में 1.21% की महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई है। यह लगातार दूसरा महीना है जब थोक स्तर पर कीमतें नीचे गई हैं। यह आंकड़ा खाद्य पदार्थों, ईंधन और औद्योगिक उत्पादों, लगभग हर श्रेणी में व्यापक राहत का संकेत देता है।
थोक मूल्य सूचकांक (WPI) उन कीमतों को मापता है जिन पर व्यापारी थोक में वस्तुओं का लेन-देन करते हैं। WPI में गिरावट का अर्थ है कि उत्पादक स्तर पर वस्तुओं की लागत कम हुई है। पिछले कुछ महीनों में, खाद्य पदार्थों की कीमतों में अस्थिरता रही थी, जिससे थोक मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई थी। हालांकि, सितंबर के बाद से, सरकारी हस्तक्षेप और अच्छी आपूर्ति के कारण कीमतों में नरमी आई है।
खाद्य पदार्थों में ऐतिहासिक अपस्फीति
अक्टूबर के आंकड़ों में सबसे बड़ी राहत खाद्य श्रेणी में दिखाई दी है। कुल खाद्य मुद्रास्फीति गिरकर 8.31% पर आ गई है। यह कमी मुख्य रूप से सब्जियों की कीमतों में भारी अपस्फीति (Deflation) के कारण है, जहाँ लगभग 35% की गिरावट आई। इसके अतिरिक्त, प्याज में 65% से अधिक, आलू में 39.88% और दालों में 16.50% की गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट घरेलू बजट पर दबाव कम करने में निर्णायक साबित होगी।
आधिकारिक बयान: आपूर्ति श्रृंखला पर ध्यान
यद्यपि कोई विशिष्ट सरकारी वक्तव्य जारी नहीं किया गया है, वित्त मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने संकेत दिया है कि सरकार की नीतियां आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने और जमाखोरी पर नियंत्रण रखने पर केंद्रित रही हैं। इन प्रयासों के साथ-साथ हाल ही में जीएसटी दरों में कटौती का भी बड़ा असर दिखा है। कई रोजमर्रा की वस्तुओं पर कर स्लैब को कम किया गया था, जिसका परिणाम थोक और खुदरा दोनों स्तरों पर कीमतों में कमी के रूप में सामने आया है।
ईंधन, बिजली और विनिर्माण भी सस्ते
महंगाई में राहत केवल खाद्य पदार्थों तक सीमित नहीं है। ईंधन, गैस और बिजली की श्रेणी में भी मुद्रास्फीति कम होकर 2.55% रही। इसका मतलब है कि थोक बाजार में पेट्रोलियम आधारित उत्पाद सस्ते हुए हैं। वहीं, विनिर्माण श्रेणी (Manufacturing) की महंगाई सितंबर के 2.33% से घटकर 1.54% हो गई। यह औद्योगिक क्षेत्र के लिए लागत कम होने का एक सकारात्मक संकेत है।
विशेषज्ञों की राय और भविष्य के निहितार्थ
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि थोक और खुदरा (CPI) दोनों मुद्रास्फीति का गिरना एक स्वस्थ संकेत है। अर्थशास्त्री डॉ. राजीव सिन्हा के अनुसार, “यह दोहरी गिरावट दर्शाती है कि मांग-जनित और आपूर्ति-जनित दोनों तरह के दबाव कम हो रहे हैं। खुदरा मुद्रास्फीति का ऐतिहासिक न्यूनतम 0.25% पर पहुँचना एक असाधारण उपलब्धि है।” उन्होंने जोर दिया कि खुदरा कीमतों में और भी कमी आने की संभावना है, जिससे आम उपभोक्ता को वास्तविक लाभ मिलेगा।
RBI पर बढ़ा ब्याज दरें घटाने का दबाव
थोक (WPI) और खुदरा (CPI) मुद्रास्फीति में भारी गिरावट के कारण अब बाजार की निगाहें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) पर टिकी हैं। 35 दिसंबर को होने वाली मौद्रिक नीति बैठक में केंद्रीय बैंक पर ब्याज दरों (Interest Rates) में कटौती का दबाव बढ़ गया है। महंगाई दर का नियंत्रण में होना RBI को सस्ते लोन देने की गुंजाइश प्रदान करता है। यदि ऐसा होता है, तो होम लोन, कार लोन और व्यावसायिक ऋण लेने वाले नागरिकों को बड़ी राहत मिल सकती है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आएगी।
निष्कर्ष: थोक मूल्य सूचकांक में यह ऐतिहासिक गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत और सकारात्मक संकेत है। यह आम नागरिक के मासिक बजट को राहत देगी और आने वाले समय में नीतिगत ब्याज दरों में कटौती का मार्ग प्रशस्त कर सकती है, जिससे समग्र आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा।

