द लोकतंत्र : केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB) में अपनी हिस्सेदारी कम करने की रणनीतिक दिशा में बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने बिक्री पेशकश (OFS) के माध्यम से बैंक में तीन प्रतिशत तक हिस्सेदारी के विनिवेश का निर्णय लिया है। बुधवार को यह पेशकश गैर-खुदरा (Non-Retail) निवेशकों के अभिदान के लिए खुल गई, जबकि खुदरा निवेशकों के लिए यह अवसर गुरुवार को उपलब्ध होगा। सरकार ने न्यूनतम मूल्य (Floor Price) ₹34 प्रति शेयर निर्धारित किया है, जो बैंक के बाजार मूल्य से रियायती दर पर है।
विनिवेश योजना का ढांचा और वित्तीय लक्ष्य
सरकार इस हिस्सेदारी बिक्री के माध्यम से लगभग ₹1,960 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रख रही है।
- मूल पेशकश और ग्रीन शू विकल्प: सरकार प्रारंभिक तौर पर दो प्रतिशत हिस्सेदारी के बराबर 38.51 करोड़ शेयर बेचेगी। अतिरिक्त बोली प्राप्त होने पर एक प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सेदारी (19.25 करोड़ शेयर) बेचने के लिए ‘ग्रीन शू’ विकल्प भी रखा गया है।
- हिस्सेदारी की वर्तमान स्थिति: वर्तमान में चेन्नई स्थित इस बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 94.61 प्रतिशत है। इस विनिवेश के पश्चात, बैंक में सार्वजनिक हिस्सेदारी में वृद्धि होगी।
- कर्मचारी कोटा: बैंक ने लगभग 1.5 लाख शेयर पात्र कर्मचारियों के लिए आरक्षित किए हैं, जहां प्रत्येक कर्मचारी अधिकतम ₹5 लाख तक के शेयरों के लिए आवेदन कर सकता है।
सेबी के नियम और अन्य सरकारी बैंकों की चुनौती
यह कदम भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी (MPS) नियमों के अनुपालन हेतु उठाया गया है। नियम के अनुसार, सूचीबद्ध कंपनियों में कम से कम 25 प्रतिशत हिस्सेदारी आम जनता के पास होनी अनिवार्य है। [Image illustrating SEBI’s Minimum Public Shareholding (MPS) rule requirement of 25% public float]
- अगस्त 2026 की समयसीमा: सेबी ने सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों को इस नियम को पूरा करने के लिए अगस्त 2026 तक की रियायत दी है।
- अन्य प्रभावित बैंक: आईओबी के अतिरिक्त पंजाब एंड सिंध बैंक (93.9%), यूको बैंक (91%) और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (89.3%) में भी सरकार की हिस्सेदारी तय सीमा से काफी अधिक है, जिससे भविष्य में इन बैंकों में भी विनिवेश की संभावना प्रबल हो जाती है।
भविष्य का प्रभाव और बाजार की प्रतिक्रिया
मंगलवार को बीएसई पर आईओबी का शेयर ₹36.57 पर बंद हुआ था। फ्लोर प्राइस बाजार भाव से लगभग 7% कम रखना निवेशकों को आकर्षित करने की एक रणनीति है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस विनिवेश से बाजार में बैंक के शेयरों की तरलता (Liquidity) बढ़ेगी और न्यूनतम सार्वजनिक हिस्सेदारी मानकों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। बैंकिंग सेक्टर में सरकार का यह अनुशासित कदम निवेशकों के भरोसे को मजबूत करेगा और राजस्व संग्रह में भी सहायक सिद्ध होगा।

