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Bean Tok Trend: क्या रोज दो कप बीन्स खाने से सच में सुधरती है गट हेल्थ? विशेषज्ञ की राय

The loktnatra

द लोकतंत्र : आजकल सोशल मीडिया, विशेषकर टिक टॉक (TikTok), पर स्वास्थ्य से जुड़े नए ट्रेंड्स तेज़ी से वायरल हो रहे हैं। ऐसा ही एक ट्रेंड है ‘बीन टोक (Bean Tok)’, जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि रोज दो कप बीन्स (फलियाँ/दालें) खाने से गट हेल्थ (आंतों का स्वास्थ्य) बेहतर होती है। कुछ उपयोगकर्ता इससे नींद, मूड और तनाव में भी सकारात्मक बदलाव आने की बात कह रहे हैं। हालाँकि, पोषण विशेषज्ञ इस ट्रेंड को लेकर संयमित प्रतिक्रिया दे रहे हैं, यह बताते हुए कि इसमें सत्यता तो है, लेकिन अति-उत्साह हानिकारक हो सकता है।

‘बीन टोक’ ट्रेंड बेहद सरल है: प्रतिदिन दो कप बीन्स का सेवन करें। इस दावे के पीछे का तर्क यह है कि बीन्स में उच्च मात्रा में प्लांट प्रोटीन, कॉम्प्लेक्स कार्ब्स, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं। ये तत्व पाचन क्रिया को सुधारने और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं, साथ ही गट माइक्रोबायोटा (आंतों में मौजूद सूक्ष्मजीव) को आवश्यक पोषण प्रदान करते हैं। यह ट्रेंड अमेरिकन डाइट के संदर्भ में तेज़ी से लोकप्रिय हुआ है, जहाँ बीन्स को दैनिक आहार में कम शामिल किया जाता है।

यद्यपि किसी भी देश की आधिकारिक स्वास्थ्य संस्था ने सीधे तौर पर इस ट्रेंड का खंडन नहीं किया है, पोषण संबंधी दिशानिर्देश हमेशा ‘संतुलित और विविध आहार’ पर बल देते हैं। विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि किसी एक खाद्य पदार्थ की अत्यधिक मात्रा लेने के बजाय, आहार में दही, अंडे, दाल और टोफू जैसे प्रोटीन स्रोतों को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि शरीर को सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें।

पोषण विशेषज्ञों के अनुसार, बीन्स अपने आप में एक उत्कृष्ट भोजन है, लेकिन रोज दो कप बीन्स खाना हर किसी के लिए आवश्यक या उपयुक्त नहीं है।

  • मात्रा का संतुलन: विशेषज्ञों की सलाह है कि रोज आधा से एक कप बीन्स भी पर्याप्त लाभ दे सकता है। अचानक मात्रा बढ़ाने से कई लोगों को गैस, ब्लोटिंग (पेट फूलना) और पाचन संबंधी परेशानी हो सकती है, क्योंकि शरीर को इतनी अधिक फाइबर की आदत नहीं होती।
  • मूड और नींद का दावा: यह दावा कि दो कप बीन्स सीधे मूड को बेहतर बनाते हैं, तनाव कम करते हैं, या नींद सुधारते हैं, पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित नहीं है। हालाँकि गट-ब्रेन कनेक्शन (आंत और मस्तिष्क के बीच संबंध) स्थापित है, और स्वस्थ आंत अप्रत्यक्ष रूप से मूड पर सकारात्मक असर डाल सकती है, लेकिन मात्रा संबंधी दावा सिर्फ सोशल मीडिया पर आधारित है।

भारतीय आहार के संदर्भ में इस ‘बीन टोक’ ट्रेंड को नया नहीं माना जा सकता। भारत में दालें, बीन्स, और लेग्यूम्स (जैसे राजमा, छोले, दाल) हमेशा से ही दैनिक भोजन का मुख्य हिस्सा रहे हैं। भारतीय पाक प्रणाली में दालों को भिगोकर, उबालकर या फर्मेंट करके खाने की पारंपरिक आदतें पाचन क्षमता को बेहतर बनाती हैं।

विशेषज्ञ बताते हैं कि जब भारतीय डाइट में पहले से ही दालें और बीन्स पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं, तो किसी ट्रेंड को देखकर अचानक दो कप बीन्स खाने की ज़रूरत नहीं है। मॉडरेशन (संतुलन) सबसे महत्वपूर्ण है।

‘बीन टोक’ ट्रेंड ने बीन्स के पोषण मूल्य पर ध्यान केंद्रित करके एक सकारात्मक काम किया है, लेकिन यह संतुलन और विविधता के सिद्धांत को अनदेखा करता है। बीन्स का सेवन निश्चित रूप से फायदेमंद है, लेकिन अत्यधिक मात्रा से बचना चाहिए। उपभोक्ताओं को सोशल मीडिया ट्रेंड्स का पालन करने से पहले विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए, और एक संतुलित आहार ही दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुधार की कुंजी है।

Uma Pathak

Uma Pathak

About Author

उमा पाठक ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से मास कम्युनिकेशन में स्नातक और बीएचयू से हिन्दी पत्रकारिता में परास्नातक किया है। पाँच वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली उमा ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएँ दी हैं। उमा पत्रकारिता में गहराई और निष्पक्षता के लिए जानी जाती हैं।

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