द लोकतंत्र: संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 पर सियासत तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस विधेयक को केंद्र सरकार की “तानाशाही” करार दिया। उनका कहना है कि यह संशोधन जनता के हितों को नुकसान पहुंचाने और विपक्ष को दबाने का हथियार बन सकता है।
अखिलेश यादव का हमला
अखिलेश यादव ने कहा कि यह विधेयक सिर्फ कुर्सी बचाने की कोशिश है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि इतिहास गवाह है, चाहे जर्मनी, इटली या रूस हो, तानाशाहों ने ऐसे फैसले किए, लेकिन कोई अपनी कुर्सी नहीं बचा पाया। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि यह संशोधन कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने और जनता के अधिकारों को कमजोर करने के लिए लाया गया है।
क्या है संविधान का 130वां संशोधन विधेयक, 2025?
लोकसभा में पेश इस विधेयक के तहत प्रस्ताव है कि यदि कोई जनप्रतिनिधि (प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री) गंभीर आपराधिक आरोपों में 30 दिनों से अधिक हिरासत में रहता है, तो उसे पद से हटाना अनिवार्य होगा।
इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में बदलाव का प्रस्ताव है।
ये अनुच्छेद क्रमशः प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से जुड़े हैं।
अमित शाह का पक्ष
गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में इस विधेयक को पेश करते हुए कहा कि यह जनहित में लाया गया है। उनका कहना था कि जनप्रतिनिधि जनता की सेवा के लिए होते हैं, और यदि वे जेल में रहते हैं तो उन्हें पद पर बने रहने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
आज लोकसभा में इस विधेयक के साथ जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 और केंद्रशासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक, 2025 भी प्रस्तुत किए गए।
विपक्ष का विरोध
अखिलेश यादव के अलावा AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह कदम विपक्षी नेताओं को टारगेट करने का हथियार बन सकता है और लोकतंत्र को कमजोर करेगा। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी इसे जनता के अधिकारों पर अंकुश लगाने वाला संशोधन बताया।
राजनीतिक महत्व
यह विधेयक न केवल सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव का कारण बना है बल्कि आने वाले समय में राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है। यदि यह कानून बनता है, तो किसी भी आपराधिक मामले में जेल जाने वाले नेताओं की राजनीतिक स्थिति पर सीधा असर पड़ेगा।