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कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी को Guard of Honour देने पर छिड़ा विवाद, जानें किसे मिलता है यह राजकीय सम्मान

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द लोकतंत्र : उत्तर प्रदेश में हाल ही में घटित एक प्रकरण ने देश के प्रशासनिक और संवैधानिक हलकों में गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में पुलिसकर्मियों द्वारा कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ देते हुए देखा गया। यह घटना न केवल प्रोटोकॉल के उल्लंघन की ओर संकेत करती है, अपितु सेना और राज्य के उस सर्वोच्च औपचारिक समारोह की शुचिता पर भी बहस छेड़ती है, जो विशिष्ट संवैधानिक पदों के लिए आरक्षित है।

गार्ड ऑफ ऑनर: एक राजकीय परंपरा की परिभाषा

गार्ड ऑफ ऑनर एक अत्यंत विशिष्ट औपचारिक परंपरा है, जो सशस्त्र बलों या पुलिस द्वारा गणतंत्र की ओर से आधिकारिक सम्मान प्रकट करने के लिए दी जाती है। यह रक्षा मंत्रालय और सैन्य नियमावली के कठोर मानदंडों द्वारा शासित होता है। इसका मूल सिद्धांत व्यक्तिगत लोकप्रियता नहीं, बल्कि संवैधानिक पद या देश के लिए किया गया सर्वोच्च बलिदान होता है।

पात्रता और कर्मियों की संख्या: प्रोटोकॉल का वर्गीकरण

भारतीय प्रोटोकॉल के अनुसार, गार्ड ऑफ ऑनर का पैमाना गणमान्य व्यक्ति की वरीयता सूची पर आधारित होता है:

  • राष्ट्रपति: 150 कर्मियों का संयुक्त दल (थल, जल और नभ सेना)।
  • प्रधानमंत्री एवं उपराष्ट्रपति: 100 कर्मियों का दल।
  • राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री: आमतौर पर 50 पुलिस या सैन्य कर्मियों का दल।
  • शहीद: कर्तव्य के दौरान प्राण आहुति देने वाले सैनिकों और पुलिसकर्मियों को उनके सर्वोच्च त्याग के सम्मान में यह सलामी दी जाती है।

निजी व्यक्तियों के लिए वर्जना

नियम अत्यंत स्पष्ट हैं कि कोई भी निजी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी प्रभावी धार्मिक उपदेशक, आध्यात्मिक गुरु, कथावाचक या सेलिब्रिटी क्यों न हो, वह गार्ड ऑफ ऑनर का हकदार नहीं है। यह सम्मान राज्य की संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करता है, न कि किसी व्यक्तिगत आस्था का।

पूर्व पुलिस अधिकारियों का मानना है कि ऐसी घटनाएं वर्दी के इकबाल को कमजोर करती हैं। प्रोटोकॉल विशेषज्ञों के अनुसार, यदि प्रशासनिक स्तर पर ऐसे विचलनों को अनदेखा किया गया, तो यह संवैधानिक परंपराओं के लिए एक गलत मिसाल कायम करेगा। उत्तर प्रदेश की इस घटना ने संवैधानिक संस्थाओं को अपने दिशानिर्देशों को पुनः सख्त करने की आवश्यकता महसूस कराई है।

गार्ड ऑफ ऑन राष्ट्र का सम्मान है और इसका वितरण अत्यंत सशक्त नियमों के तहत होना चाहिए। सत्ता और आस्था के बीच की धुंधली होती रेखा प्रजातंत्र की मर्यादा के लिए शुभ संकेत नहीं है।

Team The Loktantra

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लोकतंत्र की मूल भावना के अनुरूप यह ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां स्वतंत्र विचारों की प्रधानता होगी। द लोकतंत्र के लिए 'पत्रकारिता' शब्द का मतलब बिलकुल अलग है। हम इसे 'प्रोफेशन' के तौर पर नहीं देखते बल्कि हमारे लिए यह समाज के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही से पूर्ण एक 'आंदोलन' है।

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