द लोकतंत्र : जरा सोच के देखिए कि अगर आपके ऑफिस में आपके काम करने के घंटों को बढ़ाकर 14 घंटे प्रतिदिन कर दिया जाये तो आप पर क्या बीतेगी? बहुत से लोग कहेंगे कि इस नियम से वर्क लाइफ और पर्सनल लाइफ बैलेंस जैसे कुछ बचेगा ही नहीं। हालाँकि लगातार चार दिन 56 घंटे काम करने के बाद अगर आपको 3 दिन का वीक ऑफ मिले तो यह ‘डील’ कैसी है? ऐसी स्थिति में ऑफिस में समय काटने वालों के लिए तो यह नियम भले ही किसी गोल्डन ऑपोर्ट्यूनिटी सरीखी हो लेकिन उनके लिए जो अपने ऑफिस ऑवर का पूरी ईमानदारी से उपयोग करते हैं; कठोर है।
बता दें, कर्नाटक सरकार नया नियम लाने पर विचार कर रही है। इसमें आईटी कर्मचारियों के हर रोज 14-14 घंटे काम करने की सिफारिश की गई है। हालांकि, इसमें हफ्ते में तीन दिन वीक ऑफ की भी सिफारिश है। हालाँकि वहीं दूसरी ओर, अध्ययनों से पता चला है कि जब कोई कर्मचारी सप्ताह में 50 घंटे से ज़्यादा काम करते हैं, तो प्रति घंटे उनकी उत्पादकता में काफ़ी गिरावट आती है। सवाल यह है कि क्या कंपनियाँ अधिक काम के घंटों के बदले अपने कर्मचारियों की उत्पादकता से समझौता करेंगी?
श्रम मंत्री ने कहा उनपर आईटी उद्योग का दबाव
कर्नाटक में आईटी कर्मचारियों से हर 24 घंटे में 14 घंटे काम लेने का कानून लाने के संबंध में प्रदेश के श्रम मंत्री संतोष लाड ने कहा कि उन पर आईटी उद्योग का दबाव है। उन्होंने कहा कि सरकार अभी भी विधेयक को परख रही है जिससे सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हर दिन 14 घंटे काम करने को बाध्य होंगे। वहीं, आईटी मंत्री प्रियांक खरगे ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि आईटी कंपनियों ने कर्मचारियों के लिए 24 घंटे में 14 घंटे काम करने के संबंध में क्या प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि आईटी कंपनियों ने क्या प्रस्ताव दिया है, लेकिन श्रम विभाग द्वारा एक विधेयक लाया गया था। हम इस पर विचार करेंगे। विधेयक के बारे में गलत धारणा है। इसे मंजूरी दिए जाने से पहले इस पर और अधिक चर्चा की जाएगी।
भाजपा ने किया विरोध
इस पूरे मामले पर भाजपा के कर्नाटक अध्यक्ष बीवाय विजेंद्र ने कहा कि उनकी सीएम से अपील है कि बेंगलुरु ‘ग्लोबल आईटी हब’ है। इसमें जो भी फैसला लिया जाए सभी सहभागियों को विश्वास में लिया जाए। भाजपा ने इसका मुखर होकर विरोध करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर चर्चा की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री एकतरफा यह फैसला नहीं ले सकते हैं।
काम के घंटों को लेकर पहले भी छिड़ चुकी है बहस
काम के घंटों को लेकर पहले भी बहस छिड़ चुकी है। इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने हफ्ते में कम से कम 70 घंटे काम करने की पैरवी की थी। उन्होंने कहा था कि हर भारतीय युवा को ऐसा करना चाहिए। इसके जरिये उन्होंने देश में ‘वर्क प्रोडक्टिविटी’ बढ़ाने का लॉजिक दिया था। हालाँकि उनके इस बयान का भरपूर विरोध हुआ था। काम के घंटों को लेकर किए गए अबतक के अध्ययनों के मुताबिक़, जब लोग सप्ताह में 50 घंटे से अधिक काम करते हैं तो प्रति घंटे उत्पादकता में तेजी से गिरावट आती है।
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वहीं, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक ऑफिस का काम करते रहने के कारण लोगों का सामाजिक जीवन प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य के साथ लोगों के काम का समय बढ़ जाने के कारण कई तरह की शारीरिक समस्याएं भी हो सकती हैं। मतलब, कर्नाटक सरकार द्वारा लाये जा रहे इस नियम का प्रतिकूल प्रभाव कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है।