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राज्यसभा में Vande Mataram पर तीखी बहस: गृह मंत्री अमित शाह ने नेहरू पर लगाया राष्ट्रगीत के टुकड़े करने का आरोप, विपक्ष का हंगामा

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द लोकतंत्र : राज्यसभा में राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ पर हुई चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान ने एक नए राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है। अमित शाह ने स्पष्ट और तीखे शब्दों में कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा को जगाने वाला एक शक्तिशाली मंत्र है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के लाखों सेनानियों को प्रेरित किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस राष्ट्रीय भाव के स्रोत को बार-बार विवादों में घसीटा गया है और इसका महत्व कम करने के प्रयास किए गए हैं।

नेहरू पर राष्ट्रगीत के विखंडन का आरोप

गृह मंत्री ने अपने बयान में सीधे तौर पर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर वंदे मातरम के टुकड़े करने का गंभीर आरोप लगाया।

  • शाह ने दावा किया कि 1937 में वंदे मातरम की स्वर्ण जयंती के दौरान पंडित नेहरू ने इस गीत को मूल रचना के बजाय केवल दो अंतरों तक सीमित कर दिया था। शाह के इस आरोप ने सदन में भारी हंगामा खड़ा कर दिया, लेकिन उन्होंने अपनी बात पर दृढ़ रहते हुए कहा कि वंदे मातरम की चर्चा से बचने की यह मानसिकता आज भी कांग्रेस में दिखाई देती है। इससे पूर्व लोकसभा में प्रियंका गांधी ने भी कहा था कि वंदे मातरम पर इस समय चर्चा की कोई आवश्यकता नहीं है।

‘भारत सिर्फ जमीन नहीं, हमारी माँ है’

अमित शाह ने राष्ट्रगीत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः स्थापित करने पर जोर दिया।

  • उन्होंने कहा कि भारत की मिट्टी को ‘माँ’ के रूप में पूजने की परंपरा हजारों साल पुरानी है और वंदे मातरम ने इसी भाव को राष्ट्र के मन में दोबारा जगाया था।
  • शाह ने महर्षि अरविन्द का हवाला देते हुए बताया कि वंदे मातरम वास्तव में “आध्यात्मिक शक्ति जगाने वाला मंत्र” है। उन्होंने विपक्ष पर बंगाल चुनाव से चर्चा को जोड़कर राष्ट्रगीत के महत्व को कम करने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया।

बंकिम चंद्र के शब्दों की सार्थकता

गृह मंत्री ने वंदे मातरम के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की दूरदर्शिता को भी याद किया। उन्होंने कहा कि जब अंग्रेजों ने इस गीत पर पाबंदी लगाई थी, तब बंकिम चंद्र ने साफ़ कहा था कि भले ही उनकी बाकी रचनाएं गंगा में बहा दी जाएँ, लेकिन वंदे मातरम की शक्ति अनंत काल तक जीवित रहेगी। शाह के अनुसार, उनके ये शब्द आज पूरी तरह सच साबित हुए हैं। सदन में उठा यह विवाद एक बार फिर राष्ट्रवाद और इतिहास की व्याख्या को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच मौजूदा वैचारिक अंतर को दर्शाता है।

Team The Loktantra

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