द लोकतंत्र : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों में भले ही जन सुराज पार्टी ने कोई सीट न जीती हो, लेकिन चुनावी विश्लेषणों में उसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया है। प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली इस नवोदित पार्टी ने 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर प्रदेश की राजनीति में सीधा हस्तक्षेप किया। शाम तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, जन सुराज को लगभग 15 लाख वोट मिले हैं, जो करीब 3% वोट शेयर के बराबर है। यह आंकड़ा भविष्य की राजनीति में एक तीसरी शक्ति के उदय का स्पष्ट संकेत देता है।
बिहार की राजनीति दशकों से मुख्य रूप से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के इर्द-गिर्द केंद्रित रही है। जन सुराज का गठन एक गैर-राजनीतिक अभियान के रूप में शुरू हुआ था, जिसने बाद में चुनावी दल का रूप लिया। पहली बार बड़े पैमाने पर चुनाव लड़ते हुए 3% का वोट शेयर हासिल करना किसी भी नए क्षेत्रीय दल के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह वोट शेयर विशेष रूप से युवाओं और पहली बार वोट देने वाले मतदाताओं के एक बड़े वर्ग पर पार्टी के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।
लोकतंत्र में बहुलता का महत्व
यद्यपि किसी भी सरकारी या चुनाव आयोग के अधिकारी ने जन सुराज के प्रदर्शन पर टिप्पणी नहीं की है, यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक स्वस्थ संकेत है। चुनाव आयोग के दस्तावेजों के अनुसार, किसी भी दल को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ निश्चित वोट शेयर और सीट संख्या की आवश्यकता होती है। जन सुराज का प्रदर्शन दिखाता है कि बिहार के मतदाता अब नए विकल्पों की तलाश में हैं और राजनीतिक बहुलता (Plurality) बढ़ रही है।
‘वोट-कटवा’ से ‘किंगमेकर’ तक
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जन सुराज अब केवल ‘वोट-कटवा’ पार्टी नहीं रही, बल्कि यह कई सीटों पर ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाने लगी है। विशेषज्ञ डॉ. अविनाश कुमार कहते हैं, “जन सुराज ने सीधे तौर पर RJD और NDA दोनों के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाई है। उनका 3% वोट शेयर दोनों बड़े गठबंधनों के लिए जीत के अंतर (Margin of Victory) को निर्णायक रूप से प्रभावित करने की क्षमता रखता है।”
प्रमुख सीटों पर निर्णायक प्रभाव
जन सुराज के वोटों ने कई हाई-प्रोफाइल सीटों पर मुकाबले की दिशा बदल दी:
- राजद को नुकसान: चेरिया बरियारपुर में जन सुराज के मजबूत प्रदर्शन ने राजद उम्मीदवार को पीछे धकेल दिया, जिससे जेडीयू को अप्रत्याशित जीत मिली। इसी तरह, शेरघाटी में जन सुराज के कारण राजद प्रत्याशी की जीत की संभावनाएं कमजोर हुईं और लोजपा (राम विलास) ने बढ़त बनाई।
- एनडीए को नुकसान: जोकीहाट में जन सुराज के वोटों के विभाजन ने सीधे जदयू उम्मीदवार मंजर आलम की हार सुनिश्चित की और AIMIM को जीत की ओर धकेला। चनपटिया में भी जन सुराज के वोटों ने मुकाबला बिगाड़ा, जिससे बीजेपी उम्मीदवार पीछे रहे और कांग्रेस को फायदा मिला।
यह तथ्य कि 32 निर्वाचन क्षेत्रों में जन सुराज के वोट 10,000 से अधिक रहे, एक बड़ा राजनीतिक संकेत है। यह मतदाताओं के बीच एक नया राजनीतिक विकल्प अपनाने की बढ़ती इच्छा को दर्शाता है। यदि जन सुराज इस वोट शेयर को बनाए रखता है और आने वाले समय में इसे और बढ़ाता है, तो यह भविष्य में बिहार की राजनीतिक दिशा तय करने वाली निर्णायक तीसरी शक्ति के रूप में उभर सकता है। अगले चुनावों में, दोनों प्रमुख गठबंधनों को जन सुराज के प्रभाव को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनानी होगी।
बिहार चुनाव 2025 में जन सुराज का प्रदर्शन स्पष्ट करता है कि राज्य की राजनीति अब द्विध्रुवीय नहीं रही। 3% वोट शेयर ने प्रशांत किशोर की पार्टी को एक मजबूत आधार प्रदान किया है, जो आने वाले वर्षों में बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है।

