द लोकतंत्र/ मोमिन उस्मानी : भारत की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण अब केवल सर्दियों तक सीमित एक मौसमी समस्या नहीं रह गई है। यह एक स्थायी पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुका है, जिससे राजधानी का जनजीवन गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों ने दिल्ली को लगातार दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल किया है। राजधानी के निवासियों को अब साल भर ऐसी हवा में जीवन यापन करना पड़ रहा है, जो स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप नहीं है।
दिल्ली के कई इलाकों में AQI सामान्य दिनों में भी “खराब”
वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index – AQI) दिल्ली के कई इलाकों में सामान्य दिनों में भी “खराब” से “गंभीर” और “खतरनाक” स्तर तक पहुंच जाता है। PM2.5 और PM10 जैसे सूक्ष्म कणों की अधिकता से वायुमंडल जहरीला बनता जा रहा है। यह स्थिति विशेष रूप से बच्चों, बुज़ुर्गों और पहले से बीमार लोगों के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो रही है। दिल्ली की हवा अब साँस लेने योग्य नहीं रह गई है, जो कि एक बड़े जनस्वास्थ्य संकट की ओर संकेत करती है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में वाहनों से होने वाला उत्सर्जन सबसे ऊपर है। राजधानी में पंजीकृत वाहनों की संख्या लाखों में है, जिससे लगातार कार्बन और अन्य प्रदूषक तत्व हवा में मिलते हैं। इसके अलावा, बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्यों और सड़कों की धूल से भी प्रदूषण में भारी वृद्धि होती है। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं और खुले में कचरा जलाने की घटनाएं वायु गुणवत्ता को और बिगाड़ देती हैं। हर वर्ष अक्टूबर-नवंबर में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से दिल्ली-एनसीआर की हवा और भी अधिक जहरीली हो जाती है।
प्रदूषित हवा में रहने से घट रही जीवन प्रत्याशा
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग, त्वचा की समस्याएं और फेफड़ों की क्षमता में गिरावट जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। बच्चों में यह विकास को प्रभावित करता है, जबकि बुज़ुर्गों में मौजूदा बीमारियों को और गंभीर बना देता है। लगातार प्रदूषित हवा में रहने से जीवन प्रत्याशा तक घट सकती है।
दिल्ली सरकार और संबंधित एजेंसियों ने वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए कई प्रयास किए हैं, जैसे Odd-Even योजना, निर्माण कार्यों पर अस्थायी रोक, एंटी-स्मॉग गन का उपयोग, और GRAP (Graded Response Action Plan) का कार्यान्वयन। इन प्रयासों से कुछ अस्थायी राहत तो मिलती है, लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर ये उपाय पर्याप्त नहीं माने जा सकते। पर्यावरणविदों का मानना है कि जब तक इन उपायों को मजबूत नीति निर्माण और सख्त क्रियान्वयन के साथ नहीं जोड़ा जाता, तब तक इनका प्रभाव सीमित ही रहेगा।
दिल्ली का AQI स्थायी जनस्वास्थ्य आपातकाल, करने होंगे व्यापक उपाय
स्थायी समाधान के लिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सार्वजनिक परिवहन को अधिक प्रभावी और सुलभ बनाया जाए ताकि लोग निजी वाहनों पर निर्भर न रहें। पराली जलाने के विकल्प के रूप में किसानों को व्यवहारिक तकनीकी समाधान मुहैया कराए जाएं। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाए और हरित क्षेत्रों का दायरा बढ़ाया जाए, जिससे शहरी इलाकों में प्राकृतिक शुद्धिकरण हो सके। इसके साथ-साथ जनजागरूकता अभियान भी चलाए जाने चाहिए ताकि आम नागरिक भी प्रदूषण नियंत्रण में भागीदारी निभा सकें।
दिल्ली का वायु प्रदूषण अब केवल प्रशासनिक या मौसमी चुनौती नहीं, बल्कि एक स्थायी जनस्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है। जब तक सरकार, नागरिक, उद्योग और नीति निर्माता मिलकर ठोस, समन्वित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ दीर्घकालिक समाधान नहीं अपनाते, तब तक इस संकट से मुक्ति संभव नहीं होगी। यह समय है जब नीतिगत बदलाव, सामूहिक भागीदारी और सतत प्रयासों के माध्यम से दिल्ली को एक सांस लेने योग्य शहर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं।
इस आर्टिकल के लेखक मोमिन उस्मानी पत्रकारिता के छात्र हैं और पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं। इस लेख में दी गई जानकारी उन्होंने जुटायी है और लेख को तैयार किया है। इससे जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।