द लोकतंत्र/ आयुष कृष्ण त्रिपाठी : कहते हैं न कि अगर सोच स्पष्ट हो तो रास्ते खुद बनते हैं। IAS टी. प्रतीक राव की यात्रा उस पीढ़ी के लिए एक प्रेरक दस्तावेज़ बनकर उभरती है, जो आज के समय में प्रतियोगी परीक्षाओं, निजी जीवन और पेशेवर ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन साधने की जद्दोजहद में हैं। उनका जीवन इस बात की मिसाल है कि अगर सोच स्पष्ट हो, अनुशासन सधा हुआ हो और भीतर से उद्देश्य की समझ हो, तो कोई भी रास्ता असंभव नहीं रहता। वर्तमान में वे मध्य प्रदेश के इटारसी में उप-विभागीय अधिकारी (SDO) के रूप में कार्यरत हैं, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने की उनकी यात्रा सिर्फ सफलता की नहीं, बल्कि लगातार आत्ममंथन, परिश्रम और समाज के लिए कुछ करने के जज़्बे की भी कहानी है।
तैयारी एक परफेक्ट योजना से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे अनुशासित प्रयासों से बनती है
इंजीनियरिंग की पढ़ाई उन्होंने NIT सुरथकल से की और बाद में IIM कलकत्ता से मैनेजमेंट की डिग्री हासिल की। एक प्रतिष्ठित कॉर्पोरेट करियर के बावजूद उनके भीतर यह सवाल लगातार गूंजता रहा कि क्या यही जीवन की दिशा है? क्या कुछ ऐसा नहीं है जिससे वे अधिक नज़दीक से लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बना सकें? यही सोच उन्हें सिविल सेवा की ओर ले गई।
नौकरी के साथ UPSC की तैयारी आसान नहीं थी, लेकिन उन्होंने न तो नौकरी छोड़ी और न ही अपनी तैयारी को हल्के में लिया। हर दिन कुछ घंटे पढ़ाई, ऑफिस के बाद फोकस्ड रिवीजन, सप्ताहांत में मॉक टेस्ट और निरंतर उत्तर लेखन उनकी रणनीति का हिस्सा बने। उनका मानना है कि तैयारी एक परफेक्ट योजना से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे अनुशासित प्रयासों से बनती है।
बड़ी शुरुआत का इंतज़ार मत कीजिए
उन्होंने चार प्रयासों में UPSC परीक्षा दी और 2019 में पहले IRTS सेवा में चयनित हुए। लेकिन उनका लक्ष्य IAS था, इसलिए उन्होंने एक और प्रयास किया। 2020 में उन्हें AIR 459 मिला और उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश किया। इस यात्रा में निबंध लेखन उनकी सबसे बड़ी ताकत रहा, जिसमें उन्होंने 147 अंक हासिल किए, और यह स्कोर राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ में गिना गया। वे मानते हैं कि निबंध केवल जानकारी का प्रदर्शन नहीं, बल्कि आपकी दृष्टि, संवेदना और संतुलन की परीक्षा होता है। शब्दों का चयन, दृष्टिकोण की व्यापकता और उदाहरणों की सटीकता ही उस परीक्षा में निर्णायक बनते हैं।

प्रशासनिक सेवा में आने के बाद भी प्रतीक राव ने अपने मूल स्वभाव, संवादशीलता और मानवीय दृष्टिकोण को नहीं छोड़ा। फील्ड में रहते हुए वे न केवल योजनाओं की निगरानी करते हैं, बल्कि लोगों से सीधा संवाद स्थापित करते हैं। वे मानते हैं कि एक अधिकारी की सबसे बड़ी शक्ति उसकी उपस्थिति होती है, जब वह लोगों के बीच जाकर उनकी वास्तविक समस्याएं समझने की कोशिश करता है। उनका यह व्यवहारिक दृष्टिकोण उन्हें भीड़ से अलग करता है।
प्रतीक ने Let’s Talk Grief नाम से एक पॉडकास्ट शुरू किया है
प्रतीक राव की सोच केवल प्रशासन तक सीमित नहीं है। वे मानसिक स्वास्थ्य को भी उतना ही ज़रूरी मानते हैं जितना पढ़ाई या नीति-निर्माण को। 2023 में उन्होंने “Let’s Talk Grief” नाम से एक पॉडकास्ट शुरू किया, जो युवाओं और प्रतियोगी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित है। उनका कहना है कि UPSC की तैयारी में सबसे ज़्यादा नजरअंदाज किया गया पक्ष मानसिक दबाव होता है। वे इस पर खुलकर बात करने को ज़रूरी मानते हैं, क्योंकि जब छात्र अपनी भावनाओं को दबाते हैं, तो धीरे-धीरे वह दबाव उनके प्रदर्शन और आत्मबल दोनों पर असर डालता है।
उनकी यह पहल अब देशभर के छात्रों और युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रही है, क्योंकि यह उन्हें केवल सूचना नहीं, भावनात्मक समर्थन भी देती है। प्रतीक राव का प्रशासनिक जीवन और व्यक्तिगत दृष्टिकोण मिलकर उस नए भारत के अधिकारी की तस्वीर पेश करता है, जो सिर्फ नियमों की भाषा नहीं बोलता, बल्कि मानवीय जुड़ाव से नीतियों को अधिक अर्थपूर्ण बनाता है।
‘द लोकतंत्र’ को दिए इस विशेष इंटरव्यू में उन्होंने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया कि तैयारी हो या जीवन, सादगी, निरंतरता और उद्देश्य की स्पष्टता सबसे ज़रूरी है। वे कहते हैं, “हर कोई बड़ी शुरुआत के इंतज़ार में समय गंवा देता है। जबकि असली बदलाव छोटे प्रयासों से शुरू होता है। आप रोज़ थोड़ा भी ईमानदारी से करें, तो उसका असर आपकी यात्रा पर गहरा पड़ता है।”
उनकी कहानी UPSC की तैयारी कर रहे हर उस छात्र के लिए एक प्रकाश-स्तंभ की तरह है, जो दबाव, भ्रम और अपेक्षाओं के बीच खुद को अकेला महसूस करता है। प्रतीक राव यह यकीन दिलाते हैं कि रास्ते कठिन हो सकते हैं, लेकिन सोच अगर मजबूत हो, तो मंज़िल ज़रूर मिलती है।