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Delhi Police Commissioner: सतीश गोलचा बने दिल्ली के नए पुलिस कमिश्नर, जानें पूरा सफर

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द लोकतंत्र: दिल्ली पुलिस को नया मुखिया मिल गया है। केंद्र सरकार ने IPS सतीश गोलचा को राष्ट्रीय राजधानी का नया पुलिस कमिश्नर नियुक्त किया है। वे दिल्ली-यूटी काडर 1992 बैच के अधिकारी हैं और इससे पहले तिहाड़ जेल के महानिदेशक (DG) के पद पर तैनात थे।

कब और कैसे हुई नियुक्ति
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से गुरुवार (21 अगस्त) को अधिसूचना जारी की गई, जिसके तहत गोलचा को कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से अगले आदेश तक दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाया गया। वे अब तक अतिरिक्त चार्ज संभाल रहे IPS एसबीके सिंह की जगह लेंगे।

यह बदलाव ऐसे समय पर हुआ है जब ठीक एक दिन पहले (20 अगस्त) दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की सुरक्षा में बड़ी चूक सामने आई। सीएम पर उनके सरकारी आवास में जनसुनवाई के दौरान एक शख्स ने हमला कर दिया। हालांकि आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और इस मामले में हत्या की कोशिश का मुकदमा दर्ज किया गया।

कौन हैं सतीश गोलचा?
गोलचा का करियर लंबा और विविध रहा है। वे दिल्ली पुलिस में डीसीपी, ज्वाइंट सीपी और स्पेशल सीपी जैसे अहम पदों पर काम कर चुके हैं।
वे स्पेशल सीपी (इंटेलिजेंस) रह चुके हैं।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान कानून-व्यवस्था की कमान उनके हाथ में थी।
वे अरुणाचल प्रदेश के डीजीपी भी रह चुके हैं।
उनकी छवि एक सख्त लेकिन व्यवहारिक अधिकारी की रही है।
उनका दिल्ली पुलिस और कानून व्यवस्था से जुड़ा व्यापक अनुभव उन्हें राजधानी जैसी संवेदनशील जगह पर जिम्मेदारी निभाने के लिए योग्य बनाता है।

22 दिन में दूसरी बार बदलाव
दिल्ली पुलिस कमिश्नर पद पर महज 22 दिनों में दूसरा बदलाव हुआ है। IPS एसबीके सिंह को 31 जुलाई को ही अतिरिक्त चार्ज दिया गया था। सिंह 1988 बैच के अधिकारी हैं और वर्तमान में होमगार्ड के डीजी हैं। उनका रिटायरमेंट अगले छह महीनों में होना है।

सिंह ने IPS संजय अरोड़ा की जगह ली थी, जो 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हुए। अरोड़ा तमिलनाडु कैडर के 1988 बैच के अधिकारी थे।

सतीश गोलचा की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब दिल्ली की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि उनका प्रशासनिक अनुभव और सख्त रवैया दिल्ली पुलिस के लिए सकारात्मक साबित होगा।

Team The Loktantra

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लोकतंत्र की मूल भावना के अनुरूप यह ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां स्वतंत्र विचारों की प्रधानता होगी। द लोकतंत्र के लिए 'पत्रकारिता' शब्द का मतलब बिलकुल अलग है। हम इसे 'प्रोफेशन' के तौर पर नहीं देखते बल्कि हमारे लिए यह समाज के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही से पूर्ण एक 'आंदोलन' है।

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