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राजधानी दिल्ली: सियासत साफ़ ‘हवा’ जहरीली, ‘गंभीर प्रदूषण’ ने नीतियों और नीयत दोनों पर उठाए सवाल

Delhi, the capital city: Politics is clear, but the air is toxic; the 'severe pollution' has raised questions about both policies and intentions.

द लोकतंत्र/ सुदीप्त मणि त्रिपाठी : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एक बार फिर प्रदूषण की आपात स्थिति में खड़ी है। बृहस्पतिवार सुबह जब शहर जागा, तो सूरज की रोशनी नहीं बल्कि धुंध, कोहरा और जहरीली स्मॉग की मोटी चादर ने राजधानी का स्वागत किया। कई इलाकों में दृश्यता बेहद कम रही और हवा में घुला ज़हर आंखों में जलन, सांस की तकलीफ और गले में खराश जैसी समस्याएं बढ़ाता दिखा। आनंद विहार, विवेक विहार, अक्षरधाम, आरके पुरम, आईटीओ और चांदनी चौक जैसे संवेदनशील इलाकों में हालात सबसे ज्यादा चिंताजनक बने हुए हैं।

सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के ताज़ा आंकड़े राजधानी की बदहाल हवा की गवाही दे रहे हैं। आनंद विहार और अक्षरधाम इलाके में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 416 दर्ज किया गया, जो सीधे तौर पर ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। विवेक विहार में AQI 412, आईटीओ में 397, चांदनी चौक में 387 और द्वारका में 361 रिकॉर्ड किया गया है। इंडिया गेट जैसे वीआईपी और प्रतीकात्मक इलाके के आसपास भी AQI 344 रहा, जिसे ‘बेहद खराब’ माना जाता है। आरके पुरम क्षेत्र में AQI 374 दर्ज हुआ। ये आंकड़े केवल संख्याएं नहीं हैं, बल्कि यह संकेत हैं कि दिल्ली की हवा इस वक्त सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुकी है।

GRAP स्टेज-IV लागू, फिर भी राहत नदारद

प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने दिल्ली-एनसीआर में GRAP (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) के स्टेज-IV के तहत सभी सख्त प्रतिबंध लागू कर दिए हैं। इसके तहत निर्माण गतिविधियों पर पूर्ण रोक, गैर-जरूरी ट्रकों की एंट्री पर पाबंदी, डीजल वाहनों पर नियंत्रण और औद्योगिक गतिविधियों की निगरानी जैसे कदम शामिल हैं। बावजूद इसके, ज़मीनी हकीकत यह है कि आम नागरिक को सांस लेने लायक हवा अब भी नसीब नहीं हो रही।

यही वह बिंदु है जहां नीति और क्रियान्वयन के बीच की खाई उजागर होती है। सवाल यह नहीं है कि नियम बने हैं या नहीं, सवाल यह है कि क्या वे प्रभावी ढंग से लागू हो रहे हैं? क्या निगरानी तंत्र पर्याप्त है, या फिर हर साल की तरह इस बार भी GRAP केवल एक रिएक्टिव मैकेनिज़्म बनकर रह गया है?

नीतिगत असफलता या इच्छाशक्ति की कमी?

दिल्ली में प्रदूषण कोई मौसमी दुर्घटना नहीं, बल्कि एक संरचनात्मक समस्या है। पराली जलाने, वाहनों का अत्यधिक दबाव, निर्माण कार्यों से उड़ती धूल, औद्योगिक उत्सर्जन और डीजल पर निर्भरता ये सभी कारक वर्षों से ज्ञात हैं। इसके बावजूद हर सर्दी में प्रशासन ‘इमरजेंसी मोड’ में जाता है और अस्थायी प्रतिबंधों के सहारे हालात संभालने की कोशिश करता है। दीर्घकालिक रोडमैप, अंतर-राज्यीय समन्वय और क्लीन ट्रांसपोर्ट की ठोस रणनीति अब भी अधूरी दिखती है।

यह भी एक तथ्य है कि प्रदूषण की राजनीति अक्सर जिम्मेदारी तय करने की बजाय दोषारोपण तक सीमित रह जाती है। केंद्र बनाम राज्य, राज्य बनाम पड़ोसी राज्य इस सियासी रस्साकशी में सबसे ज्यादा नुकसान आम नागरिक का होता है। हवा किसी सरकार या पार्टी की सीमा नहीं मानती, लेकिन नीतियां अक्सर राजनीतिक सीमाओं में उलझ जाती हैं।

सिविक सेंस: नीतियों की कमजोर कड़ी

प्रदूषण के इस संकट में नागरिक जिम्मेदारी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। खुले में कचरा जलाना, निजी वाहनों का अनावश्यक इस्तेमाल, निर्माण स्थलों पर नियमों की अनदेखी और पर्यावरणीय नियमों के प्रति उदासीनता ये सभी मिलकर हालात को और बिगाड़ते हैं। हालांकि, यह कहना भी अधूरा सच होगा कि पूरी जिम्मेदारी जनता पर डाल दी जाए। सिविक सेंस तभी मजबूत होता है जब सरकार सख्त प्रवर्तन, जागरूकता अभियान और भरोसेमंद पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधाएं समानांतर रूप से उपलब्ध कराए।

आगे का रास्ता: बयानबाज़ी से समाधान तक

दिल्ली की हवा आज यह सवाल पूछ रही है कि क्या हम हर साल इसी तरह ‘गंभीर’ और ‘बेहद खराब’ AQI के आंकड़े गिनते रहेंगे, या फिर नीतिगत साहस दिखाकर स्थायी समाधान की ओर बढ़ेंगे? प्रदूषण नियंत्रण केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य, आर्थिक उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता से जुड़ा प्रश्न है।

जब तक नीति निर्माण, प्रशासनिक क्रियान्वयन और नागरिक सहभागिता तीनों एक साझा दिशा में काम नहीं करेंगे, तब तक राजधानी की हवा यूं ही जहरीली बनी रहेगी। सियासत चाहे कितनी भी साफ क्यों न दिखाई दे, अगर हवा साफ नहीं हुई तो यह पारदर्शिता भी दमघोंटू साबित होगी। दिल्ली के लिए अब वक्त बयानबाज़ी नहीं, बल्कि निर्णायक और दूरदर्शी कार्रवाई का है।

Sudeept Mani Tripathi

Sudeept Mani Tripathi

About Author

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हिंदी पत्रकारिता में परास्नातक। द लोकतंत्र मीडिया फाउंडेशन के फाउंडर । राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर लिखता हूं। घूमने का शौक है।

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