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कोर्ट परिसर में Lawyer Assault : पूर्व CJI पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर की कड़कड़डूमा कोर्ट में पिटाई, न्यायिक गरिमा पर सवाल

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द लोकतंत्र : देश की न्यायिक गरिमा और कोर्ट परिसरों की सुरक्षा पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर हाल ही में जूता फेंककर हंगामा करने वाले निलंबित वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश किशोर की सोमवार को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर में कुछ वकीलों द्वारा पिटाई कर दी गई। यह घटना तब हुई जब किशोर कोर्ट में मौजूद थे, तभी वकीलों के एक समूह ने उनपर धक्का-मुक्की की और चप्पलों से हमला कर दिया। न्यायिक सुरक्षा कर्मियों ने बड़ी मुश्किल से बीच-बचाव करके उन्हें हिंसक भीड़ से बाहर निकाला।

बी.आर. गवई पर जूता फेंकने का मामला

राकेश किशोर, जो लगभग 71-72 वर्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और 2009 से दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकृत थे, 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर 1 में एक नियमित सुनवाई के दौरान चर्चित हुए थे।

  • यह घटना उस वक्त हुई जब CJI बी.आर. गवई खजुराहो (मध्य प्रदेश) के जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की सिर कटी मूर्ति की पुनर्स्थापना से जुड़े मामले पर सुनवाई कर रहे थे। किशोर ने जूता फेंकने का प्रयास किया, किंतु सुरक्षाकर्मियों और वकीलों की सतर्कता से उन्हें तुरंत पकड़ लिया गया।
  • आश्चर्यजनक रूप से, पूर्व CJI बी.आर. गवई ने इस कृत्य के लिए किशोर को माफ़ कर दिया था। हालांकि, इस गंभीर अनुशासनहीनता के चलते बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था, जिसके कारण वह आगे की कार्रवाई तक कोई भी केस नहीं लड़ सकते थे।

आत्म-मुग्धता और न्यायिक परिसर की चुनौती

राकेश किशोर ने तमाम निंदाओं के बावजूद दावा किया था कि उन्हें अपने कृत्य पर कोई अफसोस नहीं है और यह कार्य उन्होंने ‘भगवान के सपने में आकर कहे जाने’ के निर्देश पर किया था। इस तरह का व्यवहार पेशेवर अधिवक्ता के मानकों के विपरीत माना गया।

कड़कड़डूमा कोर्ट में हुई पिटाई की ताज़ा घटना दो गंभीर मुद्दों को उजागर करती है। पहला, न्यायिक परिसरों के भीतर बढ़ती असुरक्षा और अव्यवस्था का माहौल। दूसरा, वकीलों के पेशेवर समूह में कानून को हाथ में लेकर हिंसक हो जाने की प्रवृत्ति। जब किसी व्यक्ति को कानूनी तरीके से निलंबित कर दिया गया हो, तो न्यायिक परिसर में हिंसा के माध्यम से प्रतिशोध लेना न्याय प्रणाली की मूल भावना के विरुद्ध है। बार काउंसिल और न्यायिक प्रशासन को इस घटना पर कठोर संज्ञान लेने की आवश्यकता है ताकि कोर्ट की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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