द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : उज्जैन के विश्वप्रसिद्ध महाकाल लोक परिसर से जुड़ा एक संवेदनशील मामला गुरुवार (18 दिसंबर, 2025) को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन शीर्ष अदालत ने इस पर सुनवाई से साफ इनकार कर दिया। मामला महाकाल लोक परिसर के पार्किंग क्षेत्र के विस्तार के लिए की गई भूमि अधिग्रहण कार्रवाई से जुड़ा था, जिसमें करीब 200 साल पुरानी तकिया मस्जिद की जमीन शामिल होने का दावा किया गया। याचिकाकर्ताओं को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट इस अधिग्रहण प्रक्रिया पर सवाल उठाएगा, लेकिन कोर्ट की टिप्पणी ने पूरे मामले की दिशा ही बदल दी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं सुनी याचिका?
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई के दौरान ही स्पष्ट कर दिया कि वह इस पर विचार करने के पक्ष में नहीं है। कोर्ट ने सीधा सवाल किया कि जब भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना को चुनौती नहीं दी गई, तो केवल फैसले के खिलाफ याचिका क्यों दायर की गई। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता न तो जमीन के मालिक हैं और न ही उन्होंने अधिग्रहण की वैधानिक प्रक्रिया को सीधे चुनौती दी है, ऐसे में उन्हें इस कार्रवाई पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, आप जमीन के मालिक नहीं हैं, आप सिर्फ कब्जेदार हैं। ऐसे में अधिग्रहण की प्रक्रिया पर सवाल उठाने का अधिकार आपको कैसे मिल सकता है? इस एक टिप्पणी के साथ ही याचिकाकर्ताओं की दलीलों की जमीन कमजोर पड़ती नजर आई।
याचिकाकर्ता की दलील: सामाजिक प्रभाव का आकलन नहीं हुआ
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुफैजा अहमदी ने कोर्ट में दलील दी कि भूमि अधिग्रहण से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment) करना कानूनन अनिवार्य है, जिसका इस मामले में पालन नहीं किया गया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेदों का हवाला देते हुए कहा कि प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं, इसलिए अधिग्रहण अवैध ठहराया जाना चाहिए।
हालांकि, पीठ इस तर्क से सहमत नहीं हुई। कोर्ट ने दोहराया कि यदि अधिग्रहण प्रक्रिया में कोई खामी थी, तो उसे सीधे तौर पर अधिसूचना को चुनौती देकर उठाया जाना चाहिए था। फैसले के खिलाफ अपील करना और वह भी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो भूमि का मालिक नहीं है, स्वीकार्य नहीं है।
हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का सफर
गौरतलब है कि इससे पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को भूमि अधिग्रहण के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। इतना ही नहीं, 7 नवंबर को एक अलग याचिका दाखिल कर तकिया मस्जिद के पुनर्निर्माण के निर्देश देने की मांग भी की गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है।
बता दें, करीब दो शताब्दी पुरानी तकिया मस्जिद को जनवरी 2025 में हटाया गया था। प्रशासन का तर्क है कि महाकाल लोक परिसर में श्रद्धालुओं की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए पार्किंग सुविधा का विस्तार जरूरी था। इसी उद्देश्य से संबंधित भूमि का अधिग्रहण किया गया।
क्या है इस फैसले का बड़ा संदेश?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह रुख साफ संकेत देता है कि भूमि अधिग्रहण जैसे मामलों में केवल भावनात्मक या धार्मिक आधार पर नहीं, बल्कि कानूनी अधिकार और प्रक्रिया के आधार पर ही सुनवाई संभव है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि जो पक्ष सीधे तौर पर प्रभावित नहीं है या जमीन का मालिक नहीं है, उसे अधिग्रहण को चुनौती देने का स्वतः अधिकार नहीं मिलता।
महाकाल लोक से जुड़ा यह मामला अब कानूनी तौर पर लगभग बंद होता दिख रहा है, लेकिन इसके सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ आने वाले समय में चर्चा का विषय बने रह सकते हैं।

