द लोकतंत्र: मालेगांव बम धमाका (2008) मामले में NIA की विशेष अदालत ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी 7 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इन आरोपियों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित जैसे नाम शामिल हैं।
कोर्ट के इस फैसले के बाद AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर फैसले को न्याय का मजाक बताते हुए केंद्र और राज्य सरकार पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
ओवैसी ने लिखा, “क्या मोदी और फडणवीस सरकारें इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगी, जैसे उन्होंने 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में किया था? क्या महाराष्ट्र की धर्मनिरपेक्ष पार्टियां अब जवाबदेही की मांग करेंगी? और सबसे अहम सवाल, छह बेगुनाह नमाजियों की हत्या का दोषी कौन है?”
रोहिणी सालियन का जिक्र और NIA पर आरोप
ओवैसी ने वर्ष 2016 की एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियन ने दावा किया था कि NIA ने उन पर दबाव बनाया था कि वे आरोपियों के खिलाफ नरम रुख अपनाएं।
ओवैसी ने कहा कि 2017 में NIA ने खुद साध्वी प्रज्ञा को बरी करने की कोशिश की थी, और 2019 में वे भाजपा सांसद बन गईं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह न्याय प्रणाली के साथ खिलवाड़ नहीं है?
जांच एजेंसियों की भूमिका पर उठे सवाल
AIMIM अध्यक्ष ने NIA और महाराष्ट्र ATS की जांच प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने लिखा, “यह वही सरकार है जो आतंकवाद पर सख्त होने का दावा करती है, लेकिन एक आरोपी को संसद भेजती है। क्या जांच में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को कभी जवाबदेह ठहराया जाएगा?”
मालेगांव के पीड़ित आज भी न्याय की राह देख रहे हैं
ओवैसी ने कहा कि मालेगांव केस केवल एक जांच विफलता नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़ा करता है कि क्या धार्मिक आधार पर हुए अपराधों के पीड़ितों को भारत में कभी न्याय मिलेगा? उन्होंने कहा कि मालेगांव के पीड़ित आज भी जवाबों का इंतज़ार कर रहे हैं।