द लोकतंत्र : सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) ने 36 साल पुराने और जम्मू-कश्मीर के इतिहास के सबसे संवेदनशील माने जाने वाले रुबैया सईद अपहरण केस में एक महत्वपूर्ण गिरफ्तारी की है। यह मामला तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद से जुड़ा है। इस गिरफ्तारी ने दशकों से चल रहे इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया को एक नई गति दी है।
श्रीनगर से पूर्व JKLF सदस्य गिरफ्तार
सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की पहचान जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के पूर्व सदस्य शफ़ात अहमद शुंगलू पुत्र सैफ़-उद-दीन के रूप में हुई है।
- गिरफ्तारी का स्थान: शुंगलू मूल रूप से श्रीनगर के हावल इलाके का रहने वाला बताया जा रहा है, लेकिन उसे श्रीनगर के निशात इलाके के इश्बर से पुलिस स्टेशन निशात से कस्टडी में लिया गया है।
- कार्रवाई का उद्देश्य: यह गिरफ्तारी 1989 के किडनैपिंग केस में केंद्रीय जांच एजेंसी की चल रही कार्रवाई के हिस्से के तौर पर हुई है, जिसका ट्रायल तय कोर्ट में चल रहा है।
अपहरण की घटना और आतंकवादियों की मांग
रुबैया सईद का अपहरण 1989 में किया गया था। अपहरणकर्ताओं की मुख्य मांग जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के जेल में बंद मिलिटेंट्स की रिहाई थी।
- रिहाई और परिणाम: तत्कालीन केंद्र में वीपी सिंह की सरकार ने आतंकियों की मांग को मानते हुए JKLF के पांच आतंकवादियों को छोड़ दिया था, जिसके पांच दिन बाद रुबैया सईद को रिहा किया गया।
- वर्तमान स्थिति: रुबैया सईद, जो पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की चीफ और जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बहन हैं, वर्तमान में तमिलनाडु में रहती हैं और इस केस में सीबीआई की प्रमुख गवाह हैं।
यासीन मलिक और ट्रायल की स्थिति
मामले के जानकार सूत्रों ने पुष्टि की है कि JKLF के चेयरमैन यासीन मलिक, जो उस समय आतंकी ग्रुप का कमांडर इन चीफ था, इस केस के मुख्य आरोपियों में से एक है और उसका भी ट्रायल चल रहा है।
- कोर्ट में पहचान: रुबैया सईद ने खुद कोर्ट के सामने यासीन मलिक की पहचान किडनैपर के तौर पर की है, जो इस केस में एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है।
- सीबीआई का अधिग्रहण: सीबीआई ने 1990 के दशक की शुरुआत में इस केस को अपने हाथ में लिया था और लंबे समय से इस मामले में न्याय के लिए प्रयास कर रही है।
यह गिरफ्तारी दशकों पुरानी आतंकी गतिविधि के मुआवजे और न्याय की दिशा में भारतीय कानूनी प्रणाली के दृढ़ संकल्प को दर्शाती है।

