द लोकतंत्र : समलैंगिक विवाह ( Same Sex Marriage ) पर CJI ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक लोगों के साथ उनके यौन रुझान के आधार पर भेदभाव न किया जाए। समलैंगिक विवाह पर अपना फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा, यह अदालत मानती है कि शादी सामाजिक घटना है। एक संस्था के रूप में विवाह राज्य से पहले है। इसका मतलब यह है कि विवाह की संरचना सरकार से पहले है। विवाह की शर्तें सरकार की शर्तों से परे हैं।
Same Sex Marriage को कानूनी दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर फैसला
बता दें, समलैंगिक विवाह (सेम सेक्स मैरिज) को कानूनी दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 17 अक्टूबर 2023 को अपना फैसला सुनाया। बीते 11 मई को कोर्ट ने 10 दिन की सुनवाई के बाद इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। मामले की सुनवाई के समय सामाजिक संगठनों और LGBTQ मामले पर अपनी विशेषज्ञता रखने वालों की याचिका पर केंद्र सरकार समेत देश की सभी राज्य सरकारों को एक पक्ष बनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह समलैंगिकों के अधिकारों के लिए जागरुकता अभियान चलाएं और यह सुनिश्चित करें कि उन लोगों के साथ किसी तरह का भेदभाव न हो। चीफ जस्टिस ने कहा, जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि समलैंगिक लोगों सहित सभी को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता का आकलन करने का अधिकार है।
समलैंगिक विवाह और इस रिलेशनशिप के सोशल स्टेटस को मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 18 समलैंगिक जोड़ों ने याचिका दायर की थी। हालांकि, समलैंगिक शादियों को मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया। SC ने कहा कि ये विधायिका का अधिकार क्षेत्र है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 से ये फैसला सुनाया।
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समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि जब मौलिक अधिकारों के रक्षा की बात आएगी तब शक्तियों या अधिकारों के विभाजन का सिद्धांत कोर्ट की ओर से निर्देश देने में आड़े नहीं आ सकता। कोर्ट इस मामले में कानून नहीं बना सकता, बल्कि सिर्फ इसकी व्याख्या कर सकता है और इन्हें लागू कर सकता है।