द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : दिल्ली-एनसीआर में सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को हटाने के मुद्दे पर गुरुवार (18 दिसंबर, 2025) को सुप्रीम कोर्ट (SC) में तीखी बहस देखने को मिली। अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों, बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों जैसे स्थानों से कुत्तों को हटाने को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और न्यायाधीशों के बीच सीधा संवाद हुआ, जिसमें ‘मानवता’ और ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ दोनों पहलुओं पर सवाल उठे।
कपिल सिब्बल ने MCD की प्रस्तावित कार्रवाई पर आपत्ति जताई
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल ने दिल्ली नगर निगम (MCD) की प्रस्तावित कार्रवाई पर गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि कुत्तों को हटाने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है, जबकि उनके लिए पर्याप्त शेल्टर होम मौजूद नहीं हैं। सिब्बल के मुताबिक, बिना वैकल्पिक व्यवस्था के कुत्तों को हटाना न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि पूरी तरह अमानवीय भी है।
सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने मांग की कि मामले को तत्काल सूचीबद्ध कर शुक्रवार को ही सुना जाए, क्योंकि आशंका है कि नगर निगम दिसंबर में ही नए नियम लागू कर देगा। उन्होंने कोर्ट से कहा कि यदि इस बीच कुत्तों को हटा दिया गया, तो उनके पास उन्हें रखने या पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं होगी। इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने टिप्पणी करते हुए कहा, कोई बात नहीं मिस्टर सिब्बल, उन्हें ऐसा करने दीजिए, हम इस पर विचार करेंगे।
अगली सुनवाई में तय होगी ‘मानवता’ की परिभाषा
इस संवाद के दौरान अदालत की ओर से भी कड़ी प्रतिक्रिया आई। जस्टिस संदीप मेहता ने कपिल सिब्बल से कहा कि अगली सुनवाई में अदालत एक वीडियो चलाएगी और उनसे पूछा जाएगा कि ‘मानवता’ क्या होती है। इस पर सिब्बल ने भी पलटवार करते हुए कहा कि वह भी यह दिखाने के लिए वीडियो पेश करेंगे कि ज़मीनी स्तर पर वास्तव में क्या हो रहा है।
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, कपिल सिब्बल ने यह भी कहा कि इस मामले के लिए प्रस्तावित तीन जजों की विशेष पीठ की सुनवाई रद्द कर दी गई है, जबकि जस्टिस विक्रम नाथ ने स्पष्ट किया कि अब इस याचिका पर अगली सुनवाई 7 जनवरी 2026 को होगी।
क्या है मामला?
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर को शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों जैसे संवेदनशील और संस्थागत क्षेत्रों में आवारा कुत्तों के काटने की घटनाओं में ‘खतरनाक वृद्धि’ का स्वतः संज्ञान लिया था। कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि ऐसे स्थानों से आवारा कुत्तों को हटाकर उनकी नसबंदी और टीकाकरण के बाद निर्धारित आश्रय स्थलों में भेजा जाए। साथ ही यह भी साफ किया गया था कि हटाए गए कुत्तों को दोबारा उसी स्थान पर वापस न छोड़ा जाए।
फिलहाल यह मामला सार्वजनिक सुरक्षा बनाम पशु अधिकारों की बहस का रूप ले चुका है। एक ओर नागरिकों की सुरक्षा और संस्थानों में बढ़ती घटनाओं को लेकर चिंता है, तो दूसरी ओर बिना पुख्ता पुनर्वास व्यवस्था के कुत्तों को हटाने पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई में यह तय होना बाकी है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर संतुलन कैसे साधा जाएगा।

