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एक्टर विजय ने One Nation One Election पर केंद्र को घेरा, परिसीमन पर उठाए सवाल

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द लोकतंत्र: तमिलनाडु में अपनी राजनीतिक उपस्थिति मजबूत करने के प्रयास में तमिला वेत्री कझगम (टीवीके) प्रमुख और अभिनेता विजय ने शनिवार को केंद्र सरकार पर तीखा हमला किया। उन्होंने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ और परिसीमन को लेकर अपनी आपत्ति जताई। अरियालुर में आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए विजय ने कहा कि देश में एक साथ चुनाव कराना “हत्या के समान” होगा, जबकि परिसीमन प्रक्रिया विपक्षी दलों का नाश कर सकती है।

विजय ने स्पष्ट किया कि उन्होंने राजनीति में केवल लोगों की सेवा करने के उद्देश्य से कदम रखा है, धन कमाने के लिए नहीं। केंद्र की भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने बिहार में मतदाता सूची से 65 लाख नाम गायब होने को “वोटों की चोरी” करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र का एजेंडा सभी राज्य सरकारों को बर्खास्त कर पूरे देश में एक साथ चुनाव करवाना है।

विजय ने डीएमके सरकार को भी आलोचना का निशाना बनाया और कहा कि उनकी अधूरी वादों से जनता को धोखा मिल रहा है। उन्होंने सभा में कहा, “केंद्र की तरह, डीएमके भी लोगों को अपनी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही। अगले साल का चुनाव एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा।”

उन्होंने अपने भाषण में यह भी बताया कि राजनीतिक परिवर्तन के लिए जनता की भागीदारी बेहद जरूरी है। विजय ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि युद्ध से पहले लोग मंदिर में अपनी पूजा करते थे, ठीक उसी तरह चुनाव में भी सही फैसले लेने से ही बदलाव संभव है।

विजय की सभा में भारी संख्या में फैंस जमा हुए। अपने प्रचार वाहन से तिरुचिरापल्ली आते समय उन्होंने माफी मांगी कि वे देरी से पहुंचे। उन्होंने कहा, “आप जो प्यार और स्नेह मुझ पर बरसा रहे हैं, उससे बड़ा कुछ नहीं है।”

टीवीके नेता ने कहा कि लोगों का भारी समर्थन देखकर उनके राजनीतिक विरोधी कई तरह की आलोचना कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर अपना काम जारी रखने का निर्णय लिया है। विजय ने फैंस को आश्वासन दिया कि वे तमिलनाडु में विकास और जनता की भलाई के लिए लगातार प्रयासरत रहेंगे।

विजय का यह भाषण तमिलनाडु में आगामी चुनावों में उनके पदार्पण और पार्टी की रणनीति को दर्शाता है। उन्होंने साफ किया कि उनका फोकस जनता की सेवा, सुरक्षा और विकास पर है।

Team The Loktantra

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लोकतंत्र की मूल भावना के अनुरूप यह ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां स्वतंत्र विचारों की प्रधानता होगी। द लोकतंत्र के लिए 'पत्रकारिता' शब्द का मतलब बिलकुल अलग है। हम इसे 'प्रोफेशन' के तौर पर नहीं देखते बल्कि हमारे लिए यह समाज के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही से पूर्ण एक 'आंदोलन' है।

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