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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में ‘महागठबंधन’ की हार के बड़े कारण क्या रहे, आख़िर विपक्ष क्यों बिखर गया?

What were the major reasons for the defeat of the 'Grand Alliance' in Bihar, why did the opposition disintegrate?

द लोकतंत्र/ नई दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने राज्य की राजनीति में एक बार फिर बड़ा उलटफेर दर्ज किया है, जहाँ एनडीए ने 200 से अधिक सीटों के साथ ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए सत्ता में जबरदस्त वापसी की।

भाजपा और जेडीयू ने मिलकर 2010 जैसी लहर को दोहराया, जबकि आरजेडी और महागठबंधन अपने राजनीतिक इतिहास के सबसे कमजोर प्रदर्शन में से एक पर सिमट गए। दरअसल, बिहार चुनाव के नतीजे सिर्फ जीत-हार की कहानी नहीं, बल्कि बिहार के बदलते सामाजिक समीकरण, नेतृत्व की छवि और कल्याणकारी राजनीति की निर्णायक भूमिका को भी उजागर करते हैं।

जेडीयू ने 80 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता-विरोधी लहर को मात दी

एनडीए की प्रचंड जीत के केंद्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्थिर शासन वाली छवि सबसे बड़ी वजह बनकर सामने आई। 20 साल सत्ता में रहने के बावजूद जेडीयू ने 80 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता-विरोधी लहर को मात दी। विपक्ष का ‘युवा बनाम अनुभव’ नैरेटिव वोटरों को प्रभावित नहीं कर पाया।

इसी के साथ एलजेपी (रामविलास) के चिराग पासवान ने शानदार वापसी करते हुए 19 सीटें जीतकर एनडीए की सामाजिक और युवा वोटों वाली रणनीति को मजबूती दी। दूसरी ओर, सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की, जिससे महागठबंधन का मुस्लिम वोट बैंक टूट गया और विपक्षी समीकरण बिखर गए।

महिला मतदाताओं ने निर्णायक निभाई भूमिका

इस चुनाव में महिला मतदाताओं ने निर्णायक भूमिका निभाई। पुरुषों के 62.8% की तुलना में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6% रहा, जिसने एनडीए को अप्रत्याशित बढ़त दी। महिलाओं के लिए शुरू की गई योजनाएं खासकर मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना ने गरीब और पिछड़े वर्गों में सरकार के प्रति विश्वास को मजबूत किया। वहीं, एनडीए के अन्य सहयोगी दल क्रमशः HAM, RLN और LJP (R) ने अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत प्रदर्शन करके गठबंधन की जीत में अहम योगदान दिया।

उधर, महागठबंधन की हार कई कारणों का परिणाम रही। तेजस्वी यादव सत्ता-विरोधी लहर को कैश नहीं कर पाए और आरजेडी 25 सीटों पर सिमट गई, जो 2010 के बाद दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन है। कांग्रेस 61 में से सिर्फ 6 सीट जीतकर गठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई।

‘वोट चोरी’ वाले अभियान को जनता का समर्थन नहीं मिला

राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ वाले अभियान को जनता का समर्थन नहीं मिला और सीट बंटवारे पर आंतरिक मतभेद भी कांग्रेस के प्रदर्शन में बाधक बने। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी despite बड़ी पदयात्रा और लाइमलाइट के बावजूद प्रभाव नहीं छोड़ पाई और वह कई क्षेत्रों में नोटा से भी कम वोटों पर सिमट गई।

मुकेश सहनी भी सीमांचल और मछुआरा समुदाय के बीच अपेक्षित समर्थन जुटाने में विफल रहे। INDIA गठबंधन में सीट बंटवारे और नेतृत्व की अस्पष्टता ने विपक्ष के वोटों को और कमजोर कर दिया। वाम दल भी अपनी पारंपरिक सीटों को बचाने में संघर्ष करते दिखे, जिससे पूरा विपक्ष मात्र 35 सीटों पर सिमट गया।

समग्र रूप से बिहार चुनाव 2025 ने साफ संकेत दिया है कि राज्य की राजनीति अब कल्याणकारी योजनाओं, स्थिर नेतृत्व, और महिला मतदाताओं के बढ़ते प्रभाव की ओर मुड़ चुकी है। एनडीए की जीत जहाँ समन्वित रणनीति और माइक्रो-सोशल इंजीनियरिंग का परिणाम दिखती है, वहीं विपक्ष नेतृत्व, संगठन और नैरेटिव—तीनों मोर्चों पर कमजोर साबित होता दिखा

Team The Loktantra

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