द लोकतंत्र : उत्तर प्रदेश में एनडीए को तगड़ा झटका लगा है। यूपी में राहुल-अखिलेश की जोड़ी ने न सिर्फ़ कमाल कर दिया बल्कि बीजेपी को आधे से भी कम सीटों में समेट दिया। बीजेपी की सबसे अप्रत्याशित हार फैजाबाद लोकसभा सीट पर हुई। इसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत राम मंदिर आता है जिसका इसी वर्ष जनवरी में उद्घाटन हुआ था। राममंदिर के नाते फैजाबाद संसदीय सीट पर सभी की नज़रें टिकी हुई थी। हालाँकि, चुनाव नतीजों ने भाजपा की उम्मीदें तोड़ दी और यहाँ से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी व सपा के राष्ट्रीय महासचिव अवधेश प्रसाद ने चुनाव जीत लिया।
बता दें, फैजाबाद सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद ने बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह को 54567 वोटों से हरा दिया है। फैजाबाद लोकसभा सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद को 554289 वोट मिले तो वहीं बीजेपी के लल्लू सिंह को 499722 वोट हासिल हुए। भाजपा उम्मीदवार अयोध्या विधानसभा सीट से पांच बार विधायक व दो बार सांसद रहे हैं। अगर लल्लू सिंह चुनाव जीतते तो यह उनके जीत की हैट्रिक होती।
अयोध्या में क्यों बिगड़ा बीजेपी का खेल?
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद फैजाबाद सीट पर बीजेपी की हार ने सभी को चौंका दिया है। ख़ुद बीजेपी को यक़ीन नहीं हो रहा कि जिस वायदे को लेकर उसने कई चुनाव जीते उस वादे को पूरा करने के बावजूद उसके हिस्से में हार क्यों आयी? पीएम मोदी की वाराणसी सीट के अतिरिक्त फैजाबाद दूसरी ऐसी महत्वपूर्ण सीट थी जिसपर दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई थी। दरअसल पूरे यूपी में भाजपा उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी। पिछली बार 62 सीटें जीतने वाली पार्टी इस बार महज़ 33 पर सिमट गई।
बता दें, लोकसभा चुनाव 2019 के बाद अयोध्या राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को रामलला के मंदिर की आधारशिला रखी। आधारशिला रखने के सवा तीन साल बाद इसी वर्ष ठीक चुनाव के पहले 22 जनवरी 2024 को पीएम मोदी के द्वारा रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में देश और विदेशों से विशिष्ट लोगों का अयोध्या आगमन हुआ था।
विपक्ष ने उठाया था आधे अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का मामला
अयोध्या राम मंदिर में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर कई तरह के विवाद गहराये। जिसमें प्रमुख रूप से आधे अधूरे मंदिर में प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए थे। यहाँ तक कि शंकराचार्य ने भी इस पूरे कार्यक्रम को धर्म विरुद्ध और राजनीतिक इवेंट करार दिया था। विपक्ष के सभी बड़े नेताओं ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से दूरी बनाई और यह नैरेटिव स्थापित करने में सफल साबित हुए कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पोलिटिकल माईलेज लेने के उद्देश्य से आधे अधूरे मंदिर में प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है।
मौजूदा सांसद के प्रति नाराज़गी
स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक़ भाजपा ने लल्लू सिंह को अयोध्या से उम्मीदवार बनाकर अपनी हार को पुख़्ता कर लिया था। लल्लू सिंह से स्थानीय लोग नाराज थे। अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला आने के बाद ज़मीन की ख़रीद फरोख्त तेज हुई। सस्ते में ज़मीनें ख़रीदकर महँगे दामों में बेचने के आरोप भी लल्लू सिंह पर लगे थे। साथ ही, लगातार दस सालों तक सांसद रहने के बावजूद अयोध्या का अपेक्षित विकास नहीं हुआ जिसे लेकर इनके प्रति ज़बरदस्त एंटी इनकम्बेंसी थी।
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लल्लू सिंह का संविधान बदलने का बयान भी भाजपा को भारी पड़ गया। लल्लू सिंह ने पूरे विपक्ष को संविधान बदलने का मुद्दा थमा दिया था। लल्लू सिंह ने कहा था कि मोदी सरकार को 400 सीट इसलिए चाहिए क्योंकि संविधान बदलना है। वहीं, अखिलेश ने जातीय समीकरणों को साधते हुए लल्लू के ख़िलाफ़ पासी उम्मीदवार उतार दिया जिसकी वजह से भाजपा को यहाँ हार का सामना करना पड़ा।