द लोकतंत्र : कश्मीर, सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक अलग इमोशन है, जिस पर सिनेमा जगत में ना जाने कितनी फिल्में और सीरीज बन चुकी हैं। ओटीटी के इस दौर में भी कश्मीर पर अलग-अलग तरह का कंटेंट बनाने की होड़ जारी है। ऐसे में जब ‘उरी’ जैसी शानदार फिल्म देने वाले आदित्य धर कुछ प्रोड्यूस कर रहे हैं, तो उम्मीदें ज्यादा होती हैं, और इस बार भी वह दर्शकों के भरोसे पर खरे उतरे हैं।
‘बारामूला’ नाम से यह मत सोचिएगा कि यह कश्मीर में आतंकवाद पर बनी एक और फिल्म है। इस फिल्म में आतंकवाद के साथ जिस तरह से सुपरनेचुरल ताकतों को जोड़ा गया है, वह अलग है, हैरान करने वाला है और बेहद शानदार है। यह फिल्म अब नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है।
कहानी: गायब होते बच्चे और एक बेबस DSP
फिल्म की कहानी बारामूला से शुरू होती है, जहां से कुछ बच्चे रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे हैं। जब लोकल पुलिस कुछ पता नहीं लगा पाती, तो डीएसपी रिजवान सैय्यद (मानव कौल) को बुलाया जाता है, जो अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ बारामूला में रहने आ जाते हैं।
लेकिन डीएसपी रिजवान की फैमिली में भी अपने कुछ अलग पारिवारिक फसाद चल रहे हैं; उनकी बेटी स्कूल में उन्हें अपना पिता कहने से मना कर देती है। इसके बाद कहानी में जो ट्विस्ट एंड टर्न आते हैं, जहां साधारण जांच एक सुपरनेचुरल थ्रिलर में बदल जाती है, वह आपको दो घंटे की इस फिल्म में देखना होगा।
कैसी है फिल्म: कश्मीर का अलग चेहरा
यह अपने आप में एक अलग तरह की फिल्म है। कश्मीर पर इस तरह की फिल्म शायद पहले कभी नहीं बनी, जिसने आतंकवाद को सुपरनेचुरल ताकतों से जोड़ा हो।
चौंकाने वाले ट्विस्ट: फिल्म किसी आम ड्रामा की तरह शुरू होती है, लेकिन फिर इसमें जो ट्विस्ट एंड टर्न आते हैं, वह आपको हैरान कर देते हैं। यहां जो होता है, उसका आप अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगे। कौन कब कहां गायब हो जाता है, यह चौंकाता है।
टेक्निकल पहलू: फिल्म का प्रोडक्शन वैल्यू और कश्मीर को दिखाने का तरीका बेहद खूबसूरत है। आप दो घंटे के लिए मानो बारामूला ही पहुंच जाते हैं।
छोटी कमी: हालांकि, क्लाइमैक्स में कुछ सवाल अनसुलझे रह जाते हैं (जैसे बच्चा जादूगर के बक्से से कैसे निकला या पेड़ में कैसे समा गया)। अगर कुछ चीजों को क्लाइमैक्स में और सिंपल कर दिया जाता तो यह फिल्म और मजेदार हो जाती, लेकिन तब भी यह फिल्म आपको स्क्रीन से हटने का मौका नहीं देती।
एक्टिंग: मानव कौल ने किया कमाल
कलाकार पूरी तरह से कश्मीर के लगते हैं और एक दम रियल लगते हैं, जो फिल्म का लेवल ऊंचा करते हैं।
मानव कौल: डीएसपी रिजवान सैय्यद के रूप में मानव कौल ने कमाल का काम किया है। वह एक पुलिसवाले के तौर पर सख्त हैं, लेकिन एक पिता और पति के तौर पर उनकी बेबसी कमाल की है। जब उनकी अपनी बेटी स्कूल में उन्हें नहीं पहचानती तो जो बेबसी उनके चेहरे पर दिखती है, वह देखने लायक है।
भाषा सुंबली: उन्होंने मानव की पत्नी का किरदार कमाल तरीके से निभाया है। अपने बच्चों के लिए लड़ती यह मां आप पर काफी असर डालती है।
बच्चों का काम: बच्चों का काम, खासतौर पर अरिस्मता मेहता (मानव की बेटी बनीं) का काम जबरदस्त है।
सपोर्टिंग कास्ट: शाहीद लतीफ, नीलोफर हमीद सहित बाकी सारे एक्टर्स ने अपने काम से इस फिल्म का लेवल ऊंचा किया है।
राइटिंग और डायरेक्शन
फिल्म को आदित्य धर और आदित्य सुहास जंभाले ने लिखा है और आदित्य सुहास जंभाले ने ही इसे डायरेक्ट किया है।
सराहनीय काम: फिल्म की राइटिंग धारदार है और डायरेक्शन बढ़िया है।
अखंडनीयता: बस आखिरी में कुछ सुपरनेचुरल चीजों को और सिंपल तरीके से समझाया जाना चाहिए था। यह एक कमी जरूर अखरती है, वर्ना यह एक कमाल की फिल्म है।
कुल मिलाकर, ‘बारामूला’ एक अलग तरह का अनुभव है और इसे जरूर देखना चाहिए।

