द लोकतंत्र/ लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में बुधवार का दिन कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हुआ। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रामपुर में पार्टी के वरिष्ठ नेता आज़म खान से मुलाक़ात की, जिससे प्रदेश की सियासत में हलचल मच गई है। यह मुलाक़ात महज़ एक औपचारिक भेंट नहीं, बल्कि सपा के भीतर पुराने रिश्तों को फिर से मज़बूती देने की कोशिश मानी जा रही है।
करीब दो घंटे चली यह निजी बातचीत बंद कमरे में हुई, जिसमें केवल अखिलेश यादव और आज़म खान मौजूद थे। दोनों नेताओं के बीच क्या बातचीत हुई, यह आधिकारिक रूप से सामने नहीं आया है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा ज़ोरों पर है कि इस मीटिंग का मकसद न केवल पुराने गिले-शिकवे दूर करना था, बल्कि सपा के मुस्लिम वोट बैंक को फिर से एकजुट करना भी है।
अखिलेश-आज़म की मुलाक़ात सियासी मायनों में महत्वपूर्ण
सपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि आज़म खान ने पार्टी में अपनी सक्रिय भूमिका और रामपुर की राजनीतिक स्थिति पर विस्तार से चर्चा की। बताया जा रहा है कि अखिलेश यादव ने भी उनके योगदान को सराहा और आगे साथ मिलकर काम करने का भरोसा दिया। यह संकेत साफ है कि पार्टी पश्चिमी यूपी में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए फिर से आज़म खान के अनुभव और प्रभाव का सहारा लेने जा रही है।
सनद रहे कि आज़म खान 23 सितंबर को सीतापुर जेल से रिहा हुए थे, जहां वे लगभग 23 महीने से बंद थे। जेल से बाहर आने के बाद उनके तीखे बयान और कुछ दूरी बनाए रखने वाले तेवरों ने सपा नेतृत्व को असहज कर दिया था। वहीं, बसपा से जुड़ने की अटकलों ने पार्टी के भीतर बेचैनी बढ़ा दी थी। ऐसे में अखिलेश यादव का यह कदम राजनीतिक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है, जो न सिर्फ़ सपा के भीतर ‘सुलह और संतुलन’ का संदेश देता है बल्कि विरोधियों को भी यह संकेत है कि आज़म अब भी सपा परिवार का हिस्सा हैं।
रिश्तों को गर्माहट देने की क़वायद
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि रामपुर मुलाक़ात सपा की ‘रीसेट पॉलिटिक्स’ का हिस्सा है यानी पुराने रिश्तों को नया आयाम देकर चुनावी रणनीति को सुदृढ़ करना। पश्चिमी यूपी के मुस्लिम-यादव समीकरण को फिर से सक्रिय करना ही इस मुलाक़ात का असली उद्देश्य माना जा रहा है।
आजम खान, जो मुलायम सिंह यादव के सबसे पुराने साथियों में से एक रहे हैं, अब एक बार फिर अखिलेश के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं। यह तस्वीर सिर्फ़ सौजन्य मुलाक़ात की नहीं, बल्कि उस राजनीतिक ‘रीकनेक्शन’ की है, जो आने वाले चुनावों में समाजवादी पार्टी की दिशा और दशा तय कर सकता है।