द लोकतंत्र/ नई दिल्ली डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ऐतिहासिक जीत के बाद भी सत्ता के गलियारों में तनाव साफ नज़र आने लगा है। जिस जीत को NDA अपनी सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता बता रहा है, उसी जीत के भीतर अविश्वास की हल्की but significant लहरें धीरे-धीरे सतह पर आने लगी हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परंपरा तोड़ते हुए 17 नवंबर को राज्यपाल से मुलाकात तो की, लेकिन न सरकार भंग करने की सिफारिश की और न ही अपना इस्तीफा सौंपा। उन्होंने बस इतना बताया कि वे 19 नवंबर को इस्तीफा देंगे।
इस तरह की स्थिति भारतीय राजनीति में बेहद दुर्लभ है कि कैबिनेट की अंतिम बैठक हो, विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव पास हो, मुख्यमंत्री राज्यपाल से मुलाकात करें, और फिर भी इस्तीफा लंबित रहे। सामान्यत: चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री सीधे जाकर अपना इस्तीफा सौंपते हैं, ताकि नई सरकार के गठन का रास्ता साफ हो सके। लेकिन बिहार में इस बार कहानी बिल्कुल अलग है।
तो नीतीश कुमार ने परंपरा क्यों तोड़ी?
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक बिहार की राजनीति में यह चर्चा तेज थी कि अगर BJP ज्यादा सीटें जीत गई, तो वह अपना मुख्यमंत्री चुनने की कोशिश कर सकती है। और इस बार बीजेपी ने वह स्थिति हासिल कर भी ली है ऐसे में सीएम नीतीश किसी भी तरह का ‘रिस्क’ नहीं लेना चाहते हैं। NDA की जीत में JDU ने भले 2020 के मुकाबले बड़ा सुधार किया और 85 सीटें जीतीं, मगर 89 सीटों के साथ ‘बड़े भाई’ की भूमिका भाजपा ने अपने हाथ में ले ली है जिसके बाद इस बात की आशंका ज़्यादा है कि BJP अपना सीएम बनाने की कोशिश करेगी।
चुनाव के दौरान टिकट वितरण में JDU को 101 सीटें देकर बीजेपी-जेडीयू बराबरी पर आए जरूर, लेकिन यह भी साफ दिखा कि जेडीयू का प्रभाव कम हुआ है। सूत्रों के मुताबिक टिकट बंटवारे को लेकर नीतीश कुमार नाराज़ भी थे। ऐसे में 14 नवंबर को आए नतीजों ने भाजपा की बढ़त को आधिकारिक मुहर दे दी। यही वह बिंदु है जिसने नीतीश की चिंता को और गहरा कर दिया है।
क्या BJP नीतीश को किनारे कर सकती है?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि नीतीश कुमार को यह आशंका है कि 19 नवंबर की NDA विधायक दल की बैठक में BJP किसी नए नेता को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ा सकती है। यही कारण है कि नीतीश ने इस्तीफा टालते हुए 19 नवंबर तक कुर्सी पर बने रहने का फैसला किया ताकि बीजेपी को किसी ‘अनपेक्षित कदम’ का मौका न मिले।
राजभवन से लौटने के बाद JDU मंत्री विजय चौधरी ने भी इसे अप्रत्यक्ष रूप से पुष्ट किया। उन्होंने कहा कि कैबिनेट ने विधानसभा भंग करने की अनुशंसा की है और 19 नवंबर से विधानसभा भंग होगी, जिसका मतलब है कि तब तक नीतीश ही प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाएंगे। यह समय-सीमा कुछ राजनीतिक समीकरणों को ‘सेफ’ करने के लिए पर्याप्त मानी जा रही है।
NDA की बड़ी जीत के बाद भी अविश्वास क्यों?
बिहार में यह पहला मौका है कि बंपर बहुमत के बावजूद भी गठबंधन में असहजता साफ देखी जा रही है। BJP को मिली बड़ी बढ़त ने गठबंधन में शक्ति-संतुलन पूरी तरह बदल दिया है। यह भी माना जा रहा है कि नीतीश कुमार, जो बार-बार राजनीतिक पैंतरे बदलने के लिए जाने जाते हैं, इस बार खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम से संदेश साफ है कि बिहार में सरकार बनने से पहले ही सत्ता का ‘इनसाइड वॉर’ शुरू हो चुका है। नीतीश कुमार अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने में लगे हैं, जबकि BJP अपने बढ़े हुए जनादेश को सत्ता की असली ताकत में बदलने की तैयारी में है। आने वाले दो दिन बिहार की राजनीति के लिए बेहद निर्णायक साबित हो सकते हैं। क्या 19 नवंबर को NDA की एकजुटता साबित होगी, या BJP कोई बड़ा कदम उठाएगी इस पर सबकी नज़रें टिकी हैं।

