द लोकतंत्र : केंद्र सरकार ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। मोदी सरकार ने ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ यानी एक देश-एक चुनाव को केंद्रीय कैबिनेट से हरी झंडी दे दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी देते हुए कहा कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इस पर बिल पेश किया जाएगा, जो देश में चुनावी व्यवस्था को बदलने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की समिति की सिफारिश
बता दें, ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की सिफारिशें पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा तैयार की गई हैं। इस समिति ने मार्च में अपनी रिपोर्ट कैबिनेट के सामने पेश की थी, जिसमें पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन चुनावों के 100 दिनों के भीतर ही निकाय चुनाव भी कराए जाएं, ताकि चुनावों के कारण बार-बार प्रशासनिक कामकाज में रुकावट न आए।
32 दलों ने किया समर्थन, 15 ने जताया विरोध
रामनाथ कोविंद समिति ने 62 राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर राय ली थी, जिसमें से 32 दलों ने वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया। समर्थन करने वालों में प्रमुख रूप से बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (आर) जैसे दल शामिल हैं। वहीं, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी सहित अन्य दलों ने इस मुद्दे पर विरोध जताया है।
विपक्षी दलों की कड़ी प्रतिक्रिया
दूसरी ओर, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस फैसले को ‘प्रैक्टिकल नहीं’ कहते हुए कहा कि यह कदम केवल वर्तमान मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए उठाया गया है। उन्होंने कहा, यह फैसला देश की विविधता और संघीय ढांचे को कमजोर करता है। अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग मुद्दे होते हैं और बार-बार चुनाव होते रहना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
वहीं, आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि यह चुनावी प्रक्रिया पर केंद्र सरकार का नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इसे ‘लोकतंत्र के खिलाफ’ बताते हुए कहा, यह बीजेपी की ओर से सत्ता को केंद्रीकृत करने की चाल है। अलग-अलग समय पर चुनाव होने से जनता को सरकार की जवाबदेही बढ़ती है।
अमित शाह ने पहले ही किया था ऐलान
दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 17 सितंबर को ही यह संकेत दिया था कि एनडीए सरकार मौजूदा कार्यकाल में वन नेशन-वन इलेक्शन को लागू करेगी। इससे पहले स्वतंत्रता दिवस पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की जोरदार वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव कराने से देश की प्रगति में रुकावट आती है और यह वित्तीय बोझ भी बढ़ाता है।
यह भी पढ़ें : त्रियुगी नारायण मंदिर में शादी करना कपल्स का सपना, जानें क्या है मंदिर की विशेषतायें
हालाँकि, इस योजना को अमल में लाने के लिए केंद्र सरकार को संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। इसे पहले संसद में बिल के रूप में पेश करना होगा और फिर इसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पारित कराना होगा। इतना ही नहीं, इस बिल को 15 राज्यों की विधानसभाओं से भी पास कराना जरूरी होगा। इसके बाद ही राष्ट्रपति इस पर मुहर लगा सकेंगे।
‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के फैसले पर सियासी पारा चढ़ा हुआ है। समर्थन और विरोध के इस संग्राम के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार इस ऐतिहासिक कदम को सफलतापूर्वक लागू कर पाएगी या फिर विपक्ष की चुनौती इसे रोक देगी। देश की चुनावी प्रणाली में यह बदलाव भारतीय राजनीति का नया अध्याय लिख सकता है।