द लोकतंत्र: बिहार में चल रही राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा का समापन अब पटना में पदयात्रा के रूप में होगा। पहले योजना थी कि 1 सितंबर को गांधी मैदान में विशाल रैली होगी, लेकिन अब कार्यक्रम बदल दिया गया है। कांग्रेस और आरजेडी नेताओं के अनुसार गांधी मैदान से हाईकोर्ट स्थित अंबेडकर प्रतिमा तक राहुल और तेजस्वी हजारों कार्यकर्ताओं के साथ पदयात्रा करेंगे।
रैली की बजाय पदयात्रा क्यों?
सूत्रों के मुताबिक 1 सितंबर को इंडिया गठबंधन के कई बड़े चेहरे पटना नहीं पहुंच पा रहे थे। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव यात्रा के बीच में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में समापन कार्यक्रम में गांधी मैदान भरने की गारंटी नहीं थी। विपक्षी गठबंधन नहीं चाहता था कि भीड़ कम होने का नकारात्मक संदेश जाए। इसी कारण रणनीति बदली गई और पदयात्रा का निर्णय लिया गया।
बिहार के हर जिले से जुटेंगे कार्यकर्ता
पार्टी की योजना है कि गांधी मैदान में हर जिले का कैंप लगाया जाएगा, ताकि पूरे बिहार से आए कार्यकर्ता पदयात्रा में शामिल हो सकें। यह आयोजन विपक्षी गठबंधन के लिए शक्ति प्रदर्शन का नया तरीका होगा।
SIR प्रक्रिया के खिलाफ आवाज
यह यात्रा चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया (सघन पुनरीक्षण अभियान) के खिलाफ निकाली जा रही है। विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग बीजेपी के साथ मिलकर मतदाता सूची से इंडिया गठबंधन समर्थकों के नाम काट रहा है। राहुल और तेजस्वी ने बीस जिलों में 1300 किलोमीटर की यात्रा की है। इस दौरान उन्होंने रोड शो और नुक्कड़ सभाओं के जरिए मतदाताओं से संपर्क साधा और “वोट चोर – गद्दी छोड़” जैसे नारे लगाए गए।
बड़े नेताओं की मौजूदगी
यात्रा में कई राष्ट्रीय नेता भी शामिल हुए। राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी के साथ दरभंगा से मुजफ्फरपुर तक बुलेट मोटरसाइकिल चलाई। एम.के. स्टालिन ने वोट काटे जाने को “आतंकवाद से भी बड़ा खतरा” बताया। वहीं 30 अगस्त को अखिलेश यादव भी इस यात्रा में शामिल होंगे।
चुनावी समीकरण पर असर?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह यात्रा बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी खेमे के लिए जनसंपर्क का बड़ा माध्यम बनी है। हालांकि इसका चुनावी फायदा कितना मिलेगा, यह नतीजों से ही साफ होगा। फिलहाल विपक्ष इस यात्रा को जनता की भागीदारी और संगठन की ताकत दिखाने का सबसे बड़ा अभियान मान रहा है।