द लोकतंत्र/ पटना : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। एनडीए ने जहां अपने सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग फॉर्मूला तय कर लिया है, वहीं महागठबंधन (INDIA गठबंधन) के अंदर सीटों का बंटवारा अभी भी विवादों में फंसा हुआ है।
इसी बीच विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी को आरजेडी की ओर से 18 सीटों का ऑफर मिला है, लेकिन यह प्रस्ताव उन्हें रास नहीं आया। सूत्रों के मुताबिक, इस ऑफर में वीआईपी को दी गई 18 सीटों में से 5 सीटों पर आरजेडी और 5 सीटों पर कांग्रेस के सिंबल पर उम्मीदवार उतारने की बात कही गई है।
मुकेश सहनी को अपने सिंबल पर केवल 8 सीटें
यानी तकनीकी रूप से मुकेश सहनी को अपने सिंबल पर केवल 8 सीटों पर ही उम्मीदवार लड़ाने की अनुमति होगी। इस फॉर्मूले से नाराज़ सहनी अब पटना के लिए रवाना हो चुके हैं, और उन्होंने पार्टी नेताओं के साथ रणनीति पर चर्चा करने का फैसला किया है। बताया जा रहा है कि वीआईपी प्रमुख शुरू से ही 30 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर रहे थे, लेकिन आरजेडी ने उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया।
महागठबंधन के अंदर चल रही इस खींचतान ने एक बार फिर संकेत दे दिया है कि सहयोगी दलों के बीच तालमेल बनाना इतना आसान नहीं है। सूत्रों की मानें तो तेजस्वी यादव ने साफ कर दिया है कि आरजेडी अपनी सीटों से ज्यादा कोई रियायत नहीं देगी। वहीं, कांग्रेस भी अपने कोटे में कटौती करने के मूड में नहीं है। ऐसे में वीआईपी के लिए जगह बनाना महागठबंधन के लिए चुनौती साबित हो रहा है।
मुकेश सहनी ऑफर से बेहद असंतुष्ट, सीटों पर डील नहीं हो पा रही सील
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, मुकेश सहनी इस सीट ऑफर से बेहद असंतुष्ट हैं और उन्होंने इसे ‘असंतुलित साझेदारी’ करार दिया है। उनके करीबी नेताओं का कहना है कि अगर सहनी की मांग नहीं मानी गई, तो वह महागठबंधन से अलग राह चुन सकते हैं। इससे न सिर्फ आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन की रणनीति प्रभावित होगी, बल्कि सीमांचल और मछुआरा समुदाय में वीआईपी का वोट बैंक भी टूट सकता है।
महागठबंधन में फिलहाल सीट शेयरिंग पर अंतिम सहमति नहीं बन पाई है। तेजस्वी यादव दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात कर चुके हैं और जल्द ही पटना लौटकर सहयोगी दलों के साथ बैठक करने वाले हैं। हालांकि, अब मुकेश सहनी की नाराज़गी ने गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर मुकेश सहनी गठबंधन से अलग होते हैं, तो इसका असर कई सीटों पर पड़ सकता है। खासकर उन इलाकों में जहां वीआईपी का संगठनात्मक प्रभाव मजबूत है। इस स्थिति में महागठबंधन के सामने बड़ी चुनौती होगी कि वह चुनाव से पहले अपनी ‘सहयोगी एकता’ की छवि को कैसे बचाए।
संक्षेप में, बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ गई हैं। मुकेश सहनी और आरजेडी के बीच सीटों पर नहीं हो पा रही डील सील, जिससे गठबंधन की अंदरूनी एकजुटता पर संकट गहराने के संकेत मिल रहे हैं।

