द लोकतंत्र : अपनी शादी को लेकर हर कपल हज़ार सपने बुनते हैं। हर किसी का ख़्वाब होता है कि उसकी शादी अलग तरीक़े से हो और उसका हर लम्हा ख़ास और यादगार बन जाये। उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगी नारायण मंदिर में शादी करना अब कपल्स की लिस्ट में टॉप वेडिंग डेस्टिनेशन में शामिल हो चुकी है। अपनी शादी को लेकर उत्साहित कपल्स इस मंदिर में सात जन्मों तक साथ निभाने की क़समों के साथ एक दूसरे को जीवनसाथी बना रहे हैं।
त्रियुगीनारायण मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के सामने अखंड ज्योति जलती रहती है। इसलिए मंदिर को ‘अखंड धूनी मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है।
क्या है त्रियुगी नारायण मंदिर की विशेषता, क्यों बन गई है सबकी फ़ेवरेट वेडिंग डेस्टिनेशन
त्रियुगी नारायण मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि प्राचीन समय उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के पास स्थित इस मंदिर में भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती का विवाह करवाया था। त्रियुगी नारायण मंदिर शिव-पार्वती के विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में तीन युगों से अखंड ज्वाला जल रही है। मंदिर में जल रही अग्नि को साक्षी मानकर ही भगवान शिव और पार्वती ने विवाह किया था। उसके बाद से यह अग्नि इस मंदिर में प्रज्जवलित हो रही है।
मान्यता है कि कुंड की राख प्रसाद स्वरूप अपने घर ले जाने से दंपति का वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और किसी तरह की विपत्ति नहीं आती। ये राख घर के मंदिर में रखी जाती है।
डेस्टिनेशन वेडिंग के लिये कपल्स की यह फ़ेवरेट डेस्टिनेशन बन गई है। हर साल सैकड़ों जोड़े भगवान शिव और माता पार्वती की साक्षी मानकर यह अपने नव दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करते हैं। यहाँ शादियों के बढ़ रहे क्रेज़ को देखते हुए उत्तराखंड सरकार धीरे धीरे यहाँ सुविधाओं का विकास कर रही है।
शादी के लिए करवाना पड़ता है रजिस्ट्रेशन
त्रियुगी नारायण मंदिर में शादी करने के लिए पहले रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है। यहाँ 1100 रुपये से विवाह के लिये रजिस्ट्रेशन होता है। पैरेंट्स की अनुमति के साथ कपल्स इस मंदिर में अपनी शादी की रजिस्ट्रेशन कराते हैं। रजिस्ट्रेशन फ़ीस के साथ कपल्स के आधार कार्ड की कॉपी व वैध फोन नंबर के द्वारा मंदिर समिति के पास विवाह रजिस्टर किया जाता है। मंदिर में विवाह के लिए निश्चित तिथि तय कर कपल्स को बता दी जाती है, इसके बाद यहां शादियां होती हैं।
मंदिर का पौराणिक महत्व
भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह में सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी पुरोहित बने थे। विवाह से पहले ब्रह्मदेव ने मंदिर में स्थित एक कुंड में स्नान किया था, जिसे ब्रह्मकुंड के नाम से अब जाना जाता है। इस मंदिर का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु इस कुंड में स्नान करते हैं। यहां एक और कुंड है, जिसे विष्णु कुंड कहते हैं। विवाह में भगवान विष्णु ने पार्वती जी के भाई की भूमिका का निर्वाह किया था। कहते हैं विष्णु कुंड में स्नान करके भगवान विष्णु विवाह में सम्मिलित हुए थे।
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त्रियुगी नारायण मन्दिर के अहाते में सरस्वती गङ्गा नाम की एक धारा का उद्गम हुआ है। इसी धारा से पास के सारे पवित्र सरोवर भरते हैं। सरोवरों के नाम रुद्रकुण्ड, विष्णुकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड व सरस्वती कुण्ड हैं। रुद्रकुण्ड में स्नान, विष्णुकुण्ड में मार्जन, ब्रह्मकुण्ड में आचमन और सरस्वती कुण्ड में तर्पण किया जाता है।