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Baikunth Chaturdashi 2025: कार्तिक माह में कब है ‘बैकुंठ चतुर्दशी’? हरि और हर के मिलन के पर्व का शुभ मुहूर्त और जानें निशिताकाल पूजा विधि

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द लोकतंत्र : हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व बैकुंठ चतुर्दशी, हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है। यह पर्व केवल पूजा-उपासना का दिन नहीं, बल्कि भगवान शिव (हर) और जगत के पालनहार भगवान विष्णु (हरि) के एकाकार (मिलन) का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन स्वयं भगवान विष्णु को बैकुंठ जाने का मार्ग मिला था, इसीलिए इसे बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है।

इस विशेष अवसर पर, देश के कई हिस्सों में विशेष आयोजन होते हैं, जिसमें काशी (वाराणसी) में बाबा विश्वनाथ की पंचोपचार विधि से पूजा और महाआरती का विधान है।

बैकुंठ चतुर्दशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचांग गणना के अनुसार, इस साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि निम्नलिखित समय पर रहेगी:

विवरणसमय और तिथि
चतुर्दशी तिथि की शुरुआतमंगलवार, 04 नवंबर 2025 को प्रात: काल 2 बजकर 05 मिनट पर
चतुर्दशी तिथि का समापनमंगलवार, 04 नवंबर 2025 को रात 10 बजकर 36 मिनट पर
बैकुंठ चतुर्दशी04 नवंबर 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी।
निशिताकाल पूजा मुहूर्तरात के 11 बजकर 39 मिनट से लेकर 12 बजकर 31 मिनट तक
पूजा की कुल अवधि52 मिनट

धार्मिक ग्रंथों में निशिताकाल (अर्धरात्रि का समय) में की गई पूजा को इस दिन अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।

बैकुंठ चतुर्दशी पूजा विधि (हरि-हर की संयुक्त उपासना)

बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की एक साथ पूजा करने का विधान है। इस दिन की पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. स्नान और शुद्धिकरण: चतुर्दशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद पूरे घर और मंदिर की सफाई करें। व्रत का संकल्प लें (यदि संभव हो)।
  2. हरि को पीला अर्पण: भगवान विष्णु को शुद्ध जल चढ़ाएं। उन्हें पीला चंदन लगाएं और पीला पुष्प अर्पित करें। भोग में विशेष रूप से बेल पत्र अवश्य लगाएं, क्योंकि तुलसी विष्णु जी को अत्यंत प्रिय है।
  3. हर का अभिषेक: भगवान शिव को जल चढ़ाएं। उनका पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक करें। शिवजी को सफेद चंदन, धतूरा, तुलसी दल (तुलसी का भोग), भांग और सफेद फूल चढ़ाएं।
  4. मंत्र जाप और आरती: मंदिर या पूजा स्थल पर घी का दीपक जलाएं। इस दिन भगवान विष्णु और शिव जी के मंत्रों का जाप करें।
  5. क्षमा प्रार्थना: अंत में, दोनों देवताओं की संयुक्त आरती करें और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हुए उनसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें।

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व (हरि-हर का एकाकार)

बैकुंठ चतुर्दशी का दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है:

फल: भक्त इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु और शिव जी की उपासना करते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने और पूजा करने वाले व्यक्ति को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।

हरि-हर का मिलन: यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने चतुर्मास की अवधि के बाद शिवजी की पूजा की थी और शिवजी ने उन्हें अपना सुदर्शन चक्र वापस सौंपा था। यह दिन बताता है कि शिव और विष्णु एक ही शक्ति के दो रूप हैं।

काशी का विधान: इस दिन काशी (वाराणसी) में विशेष रूप से भगवान विश्वनाथ की पूजा और महाआरती की जाती है। इस पर्व को काशी में देवताओं द्वारा मनाई जाने वाली दिवाली (देव दीपावली) के रूप में भी मनाया जाता है।

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. द लोकतंत्र इसकी पुष्टि नहीं करता है।

Uma Pathak

Uma Pathak

About Author

उमा पाठक ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से मास कम्युनिकेशन में स्नातक और बीएचयू से हिन्दी पत्रकारिता में परास्नातक किया है। पाँच वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली उमा ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएँ दी हैं। उमा पत्रकारिता में गहराई और निष्पक्षता के लिए जानी जाती हैं।

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