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 आधुनिक जीवन का सार: गीता के 3 ‘Work-Life Balance’ सूत्र, डिजिटल डिस्टर्बेंस के बीच कैसे पाएं मानसिक शांति

The loktnatra

द लोकतंत्र : आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में कार्य-जीवन संतुलन (Work-Life Balance) बनाए रखना एक सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। काम का लगातार बढ़ता दबाव, तीव्र प्रतिस्पर्धा और डिजिटल डिस्टर्बेंस के बीच मानसिक शांति और निजी जीवन को समय देना जटिल होता जा रहा है। ऐसे में, पाँच हजार वर्ष से भी पहले महाकाव्य महाभारत की रणभूमि में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेश आज के पेशेवर जीवन के लिए उत्कृष्ट मार्गदर्शक हैं। हिंदू धर्म का यह अद्वितीय ग्रंथ, जिसकी जयंती हर साल मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी (इस वर्ष 1 दिसंबर 2025) को मनाई जाती है, तनावमुक्त और संतुलित जीवन जीने के तीन प्रभावी सूत्र प्रदान करता है।

संतुलित जीवन के तीन प्रमुख सूत्र

1. निष्काम कर्म (फल की चिंता न करना)

गीता का पहला और सबसे महत्वपूर्ण सूत्र ‘निष्काम कर्म’ है। इसका अर्थ है: कर्म पर ध्यान केंद्रित करें और फल की चिंता न करें।

  • मानसिक दबाव में कमी: कार्यस्थल पर ज्यादातर तनाव अपेक्षाओं और परिणाम को लेकर ही बढ़ता है। जब व्यक्ति पूरे मन से अपना काम करता है और परिणाम की आसक्ति छोड़ देता है, तो मानसिक दबाव स्वतः कम हो जाता है। यह दृष्टिकोण काम की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है और मन को शांत रखता है।

2. समत्व भाव (समान भाव)

दूसरा सूत्र ‘समत्व भाव’ है, जिसका अर्थ है सफलता और असफलता दोनों को समान भाव से स्वीकार करना।

  • स्थिरचित्तता: आज का पेशेवर जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है; हर प्रोजेक्ट का सफल होना या हर डील में मुनाफा होना संभव नहीं है। गीता हमें सिखाती है कि परिणाम चाहे जो भी हो, व्यक्ति को हर्ष और शोक से अप्रभावित रहते हुए स्थिरचित्त रहना चाहिए। यह मनोदशा बार-बार होने वाले झटकों से बचने में मदद करती है।

3. मन पर नियंत्रण (एकाग्रता का विज्ञान)

तीसरा और डिजिटल युग के लिए सबसे प्रासंगिक सूत्र है ‘मन पर नियंत्रण’।

  • डिजिटल एकाग्रता: डिजिटल युग में नोटिफिकेशन, सोशल मीडिया और लगातार चैट मन को अस्थिर बनाते हैं। गीता के अनुसार, जिसने मन को जीत लिया है, उसके लिए जीवन सरल हो जाता है। वर्क-लाइफ बैलेंस का सीधा अर्थ है: काम के समय सम्पूर्ण एकाग्रता और घर के समय पूर्ण मन से परिवार को समय देना। यह प्रभावी सूत्र जीवन की दोनों भूमिकाओं के साथ न्याय करने में मदद करता है।

श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन को संतुलित और तनावमुक्त बनाने का एक व्यावहारिक दर्शन है, जिसकी प्रासंगिकता 5000 वर्षों बाद भी अखंड है।

Uma Pathak

Uma Pathak

About Author

उमा पाठक ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से मास कम्युनिकेशन में स्नातक और बीएचयू से हिन्दी पत्रकारिता में परास्नातक किया है। पाँच वर्षों से अधिक का अनुभव रखने वाली उमा ने कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी सेवाएँ दी हैं। उमा पत्रकारिता में गहराई और निष्पक्षता के लिए जानी जाती हैं।

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