द लोकतंत्र : भगवान श्रीराम के परम भक्त और हिंदू धर्म में पूज्यनीय देव हनुमान जी को उनकी अखंड ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा के लिए जाना जाता है। हालाँकि, धर्म शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में उनके एक पुत्र ‘मकरध्वज’ का वर्णन मिलता है, जो अक्सर भक्तों के बीच जिज्ञासा और विरोधाभास का विषय बन जाता है। मान्यता है कि हनुमान जी को अमरता का वरदान प्राप्त है और वह कलियुग में भी पृथ्वी पर वास करते हैं। उनके पुत्र मकरध्वज का जन्म एक अनोखे और चमत्कारी ढंग से हुआ था, जिसके कारण हनुमान जी का ब्रह्मचर्य कभी खंडित नहीं माना जाता।
मकरध्वज के जन्म से जुड़ी यह अनोखी कथा वाल्मीकि रामायण और अन्य पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है। कथा के अनुसार, यह घटना तब घटित हुई जब हनुमान जी ने माता सीता का पता लगा लिया था और उन्हें लंका में खोज लिया था। इसके बाद उन्हें लंकापति रावण के दरबार में पेश किया गया, जहाँ उनकी पूंछ में आग लगा दी गई। हनुमान जी ने अपनी जलती हुई पूंछ से पूरी लंका को दहन कर दिया। लंका की प्रचंड अग्नि के कारण उनके शरीर का तापमान बहुत अधिक हो गया था।
लंका दहन के बाद हनुमान जी अपनी जलती हुई पूंछ की गर्मी और आग को शांत करने के लिए तत्काल समुद्र में कूद गए। पौराणिक आख्यान के अनुसार, जब वह समुद्र के ठंडे जल में पहुँचे, तो उनके शरीर से अत्यधिक तापमान के कारण पसीने की एक बूंद निकली और अनजाने में समुद्र के जल में गिर गई। उसी समय, समुद्र में मौजूद एक विशाल मछली (मकर) ने अनजाने में हनुमान जी के शरीर से निकली उस बूंद को निगल लिया। उस बूंद के प्रभाव से उस मकर ने गर्भ धारण कर लिया, और इस प्रकार एक अनोखे बालक का जन्म हुआ।
कुछ समय बाद, पाताल लोक के राजा अहिरावण (जो रावण का भाई था) ने उस मछली को पकड़ा। जब मछली का पेट काटा गया, तो उसमें से एक अनोखा बालक निकला। यह बालक मकर और वानर दोनों का रूप लेकर जन्मा था। अहिरावण ने उस बालक की विलक्षणता देखकर उसे पातालपुरी का द्वारपाल नियुक्त कर दिया और उसका नाम मकरध्वज रखा गया।
रावण के साथ युद्ध के दौरान, जब अहिरावण ने छल से भगवान राम और लक्ष्मण को पाताल लोक पहुँचा दिया, तब हनुमान जी उन्हें छुड़ाने के लिए पाताल लोक पहुँचे। द्वार पर उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। दोनों में घमासान युद्ध हुआ। अंत में, मकरध्वज ने अपने जन्म की पूरी कथा हनुमान जी को बताई, जिसके बाद हनुमान जी को ज्ञात हुआ कि वह उन्हीं के पुत्र हैं।
यह कथा हिंदू धर्म में ब्रह्मचर्य की गूढ़ परिभाषा को समझाती है। हनुमान जी का ब्रह्मचर्य मानसिक शुद्धता और संयम पर आधारित था, न कि केवल शारीरिक त्याग पर। मकरध्वज का जन्म काम भाव या सामान्य वैवाहिक संबंध से नहीं, बल्कि एक शारीरिक प्रक्रिया (पसीने की बूंद) के कारण हुआ था, इसलिए धार्मिक रूप से हनुमान जी का ब्रह्मचर्य अखंड माना गया। मकरध्वज आज भी पाताल लोक में पूजे जाते हैं और वह हनुमान जी के आध्यात्मिक बल का ही विस्तार हैं।

