द लोकतंत्र : करवा चौथ हमारे देश का प्रमुख त्योहार है, जो विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को माता पार्वती, भगवान शिव, गणेश जी और चंद्रदेव की पूजा करती हैं। व्रत तोड़ने से पहले चांद को अर्घ्य देने की परंपरा है, और इसके साथ ही महिलाएं अपने पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत समाप्त करती हैं।
करवा चौथ की कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी बहन करवा थी। सभी भाई अपनी बहन से अत्यधिक स्नेह करते थे। एक दिन करवा अपने ससुराल से मायके आई। शाम को, जब सभी भाई घर लौटे और खाने के लिए बैठे, करवा ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का व्रत है। उसे चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना है।
सबसे छोटे भाई ने उसकी व्याकुलता देखी और दूर पीपल के पेड़ पर दीपक जलाकर चलनी के पीछे रख दी। दूर से ऐसा प्रतीत हुआ कि चांद निकल आया है। करवा ने अर्घ्य दिया और भोजन करना शुरू किया, लेकिन उसका व्रत गलत तरीके से टूटा। पहले कुछ खाने पर उसे छींक आई और बाल निकले, और तीसरे टुकड़े के साथ उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला।
करवा ने अपनी भाभियों से सहायता मांगी और एक साल तक अपने पति के शव के पास तपस्या की। अगले करवा चौथ पर, उसकी भाभियों की मदद से उसने अपने पति को पुनर्जीवित किया। इस कथा से स्पष्ट होता है कि करवा चौथ का व्रत केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक नहीं है, बल्कि सुहागिन का पति के प्रति प्रेम और समर्पण का भी प्रतीक है।
पूजा और व्रत की परंपरा
करवा चौथ के दिन महिलाएं सुबह से ही व्रत की तैयारी करती हैं। वे दिनभर पानी और भोजन का सेवन नहीं करती हैं। शाम को चंद्रमा उदय होते ही अर्घ्य देकर व्रत खोलती हैं। पूजा के दौरान माता पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी का आह्वान किया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी भक्ति और पति के प्रति प्रेम को व्यक्त करती हैं।
करवा चौथ न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम, समर्पण और विश्वास की भावना को भी मजबूत करता है।