द लोकतंत्र: सनातन धर्म में श्रावण मास का विशेष महत्व है। यह महीना शिवभक्तों के लिए आस्था, उपवास और पूजा का पर्व होता है। 2025 में सावन मास 11 जुलाई से आरंभ हुआ था और अब यह पवित्र माह 9 अगस्त 2025 को समाप्त होगा। इस दिन श्रावण पूर्णिमा है, जो न केवल भगवान शिव की विशेष पूजा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि कई धार्मिक अनुष्ठानों और पर्वों से भी जुड़ी हुई है।
सावन में शिव पूजा का अंतिम दिन:
श्रावण पूर्णिमा शिव भक्ति का चरम बिंदु मानी जाती है। जो भक्त पूरे सावन भगवान शिव को जल अर्पित नहीं कर पाए, वे इस अंतिम दिन गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक कर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। इस दिन व्रत और रुद्राभिषेक करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
चंद्रमा पूजन का महत्व:
ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा का संबंध मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और मन की स्थिरता से है। चंद्रमा कमजोर हो तो जीवन में अस्थिरता, भ्रम और मानसिक पीड़ा बनी रहती है। सावन की पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में होता है। इस दिन चंद्र देव का पूजन करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और चंद्र दोष शांत होता है।
रक्षाबंधन और श्रावणी उपाकर्म:
श्रावण पूर्णिमा पर ही रक्षाबंधन मनाया जाता है, जिसमें बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं। साथ ही ब्राह्मणों द्वारा यज्ञोपवीत (जनेऊ) परिवर्तन का कर्म ‘श्रावणी उपाकर्म’ भी इसी दिन होता है। यह कर्म वेद अध्ययन से जुड़े लोगों के लिए अत्यंत पवित्र होता है।
तर्पण और सत्यनारायण व्रत का महत्व:
श्रावण पूर्णिमा पर पितरों को तर्पण देने की भी परंपरा है। इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। साथ ही इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा और व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और आर्थिक स्थिति में सुधार आता है।
9 अगस्त 2025 को आने वाली श्रावण पूर्णिमा शिव, चंद्रमा, विष्णु और पितरों की आराधना का अद्भुत संयोग लेकर आ रही है। यह दिन केवल सावन का समापन नहीं, बल्कि आत्मिक और पारिवारिक उन्नति का एक विशेष अवसर भी है।